जगन्नाथ पुरी: आस्था का वो सागर, जहाँ मोक्ष की लहरें हर भक्त को छू जाती हैं। Part 4
आज हमने जगन्नाथ पुरी से जुड़े तीन अत्यंत गहन और रहस्यमय पहलुओं को फिर से उठाया है:
मंदिर की रसोई, बेड़ी हनुमान मंदिर, और कलियुग के अंत से जुड़ी भविष्य वाणियां ।
आइए, इन विषयों को और सटीकता, भावनात्मक गहराई और व्यापक परिप्रेक्ष्य के साथ समझते हैं। यह सिर्फ तथ्य नहीं, बल्कि आस्था, समर्पण और ब्रह्मांडीय व्यवस्था की कहानियाँ हैं।
पुरी की रसोई भंडार का रहस्य: आनंद बाजार – जहाँ अन्नपूर्णा स्वयं परोसती हैं दिव्य प्रेम
जगन्नाथ पुरी मंदिर की रसोई, जिसे प्रेम से आनंद बाजार कहा जाता है, सचमुच पृथ्वी पर एक अद्भुत स्थान है जहाँ ईश्वरीय लीला हर पल प्रत्यक्ष होती है। यह केवल एक रसोई नहीं, बल्कि स्वयं देवी अन्नपूर्णा (देवी लक्ष्मी) का वास है, जहाँ हर कण में भगवान का आशीर्वाद समाया हुआ है। यह संसार की सबसे बड़ी और रहस्यमय पाकशालाओं में से एक है, जहाँ प्रतिदिन लाखों भक्तों के लिए महाप्रसाद तैयार होता है। कल्पना कीजिए, 500 से अधिक रसोईये और उनके 300 सहयोगी, इतनी विशाल मात्रा में भोजन कैसे बना पाते हैं, और वह भी इतने सटीक ढंग से? इसका उत्तर केवल विज्ञान में नहीं, बल्कि गहरी आस्था और ईश्वरीय हस्तक्षेप में मिलता है।
* महाप्रसाद की अक्षयता: एक अनवरत दिव्य धारा
इस रसोई का सबसे विस्मयकारी रहस्य यह है कि यहाँ बनने वाला प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता और न ही कभी व्यर्थ होता है। चाहे मंदिर में 1,00,000 भक्त आएं या 5,00,000, हर किसी को भरपेट प्रसाद मिलता है। और जैसे ही जगन्नाथपुरी मंदिर के कपाट बंद होने का समय आता है, आश्चर्यजनक रूप से, प्रसाद अपने आप खत्म हो जाता है। एक भी दाना व्यर्थ नहीं जाता, एक भी भक्त भूखा नहीं रहता। यह किसी भी मानवीय प्रबंधन या गणित से परे है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह महाप्रसाद भगवान जगन्नाथ पुरी की असीम कृपा का प्रत्यक्ष प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान जगन्नाथ इस बात की व्यवस्था करते हैं कि जगन्नाथपुरी मंदिर में आने वाले हर भक्त को, चाहे उनकी संख्या कितनी भी हो, पर्याप्त मात्रा में प्रसाद मिले। मंदिर में प्रसाद बनाने की व्यवस्था इतनी सुव्यवस्थित है कि प्रतिदिन आने वाले भक्तों की संख्या के आधार पर प्रसाद तैयार किया जाता है, और हैरतअंगेज बात यह है कि प्रसाद की मात्रा का अनुमान कभी गलत नहीं लगता। यह कहा जाता है कि भगवान स्वयं इस संख्या का निर्धारण करते हैं, जिससे प्रसाद न तो कभी कम होता है और न ही ज्यादा. यह घटना इस बात का जीवंत प्रमाण है कि भगवान अपने भक्तों की हर छोटी से छोटी आवश्यकता का ध्यान रखते हैं, और उनका प्रेम इतना गहरा है कि वे अपने अन्न से उन्हें तृप्त करते हैं, जिससे आत्मा और शरीर दोनों को पोषण मिले।
* सात बर्तनों का चमत्कार: ऊष्मा का रहस्यमय क्रम
इस रसोई का एक और अद्भुत पहलू है प्रसाद बनाने की विधि. यहाँ आज भी लकड़ी के चूल्हे पर भोजन तैयार किया जाता है, जो इसकी प्राचीनता और शुद्धता का प्रतीक है. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि प्रसाद सात मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है। ये सातों बर्तन एक के ऊपर एक करके, एक सीढ़ी की तरह चूल्हे पर रखे जाते हैं। लेकिन विज्ञान के सभी नियमों को धता बताते हुए, जो बर्तन सबसे ऊपर यानी सातवें नंबर पर होता है, उसमें सबसे पहले भोजन बनकर तैयार होता है। इसके बाद ही छठे, पाँचवें, चौथे, तीसरे, दूसरे, और फिर सबसे नीचे रखे गए बर्तन का प्रसाद सबसे बाद में पकता है।
यह प्रक्रिया सैकड़ों सालों से चली आ रही है और इसके पीछे छिपे विज्ञान को अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। यह किसी भी आधुनिक पाकशास्त्र या ऊष्मागतिकी के सिद्धांत से मेल नहीं खाता। यह चमत्कार स्पष्ट रूप से दिव्य हस्तक्षेप का प्रमाण है। मानो प्रकृति के नियम भी भगवान की इच्छा के आगे नतमस्तक हो जाते हैं, और वे अपने भक्तों के लिए प्रसाद बनाने की इस विधि को भी अलौकिक बना देते हैं। यह हमें सिखाता है कि कुछ रहस्य मानवीय बुद्धि से परे होते हैं और उन्हें केवल आस्था की आँखों से ही देखा जा सकता है, जहाँ ईश्वरीय शक्ति ही सर्वोपरि है।
* पवित्रता और समर्पण: हर कण में समाया आशीर्वाद
इस रसोई में केवल विशेष प्रकार के पुजारियों को ही प्रवेश की अनुमति होती है, और भोजन बनाने की पूरी प्रक्रिया अत्यंत पवित्रता और भक्तिभाव के साथ की जाती है। यह प्रसाद केवल भोजन नहीं, बल्कि भगवान का दिया हुआ साक्षात आशीर्वाद है, जिसे ग्रहण करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ उपयोग होने वाला लकड़ी का ईंधन और विशेष प्रकार की दालें व चावल इस परंपरा की पवित्रता और शुद्धता को बनाए रखते हैं।
आनंद बाजार की यह रसोई केवल भोजन पकाने का स्थान नहीं, बल्कि एक पवित्र तीर्थ है जहाँ भगवान स्वयं अपने भक्तों को प्रेम और आशीर्वाद के रूप में अन्न प्रदान करते हैं। यह जगन्नाथ धाम का एक ऐसा पहलू है जो भक्तों के हृदय को तृप्त करता है और उन्हें भगवान के सामीप्य का गहरा अनुभव कराता है।
बेड़ी हनुमान मंदिर से जुड़ा रहस्य: समुद्र का शाश्वत प्रहरी – भक्त की दृढ़ता और प्रभु का संरक्षण
जगन्नाथपुरी मंदिर के पश्चिम में समुद्र तट पर स्थित बेड़ी हनुमान मंदिर, जिसे दरिया महावीर मंदिर भी कहते हैं, अपने आप में एक अनूठा और अत्यंत भावनात्मक महत्व रखता है। यह मंदिर भगवान और उनके परम भक्त हनुमान के बीच के गहरे, कभी-कभी ‘कठिन’ संबंध को दर्शाता है, जहाँ प्रभु का आदेश और भक्त का प्रेम एक साथ कार्य करते हैं।
* हनुमान जी को बेड़ियों में बांधने की मार्मिक कथा:
यह विचार कि स्वयं शक्ति के प्रतीक, भगवान हनुमान को बेड़ियों (जंजीरों) में बांधा गया है, किसी को भी हैरान कर सकता है। इसके पीछे की कथा अत्यंत मार्मिक है, और यह स्वयं भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) की लीला से जुड़ी है। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर पुरी में भव्य जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ, तो इसे समुद्र के बार-बार आने वाले प्रकोप से बचाने के लिए हनुमान जी को समुद्र तट पर सुरक्षा में तैनात किया गया था। उनका मुख्य कार्य समुद्र को नगर में प्रवेश करने से रोकना था।
किन्तु, भक्त हनुमान का अपने प्रभु जगन्नाथ के प्रति प्रेम इतना गहरा था कि जब भी उन्हें प्रभु के दर्शन की तीव्र इच्छा होती, वे अपनी चौकी छोड़कर मंदिर चले आते। उनके अनुपस्थित होते ही, समुद्र भी अवसर पाकर प्रचंड रूप से नगर में प्रवेश कर जाता था, जिससे मंदिर और पुरी को कई बार भारी क्षति पहुँची। भगवान जगन्नाथ ने बार-बार हनुमान जी को समझाने का प्रयास किया, लेकिन भक्त का प्रेम कर्तव्य पर भारी पड़ रहा था, और हनुमान जी खुद को प्रभु के दर्शन से रोक नहीं पा रहे थे।
तब, अपने मंदिर और भक्तों की चिरस्थायी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, भगवान जगन्नाथ ने एक अत्यंत कठिन और अद्वितीय निर्णय लिया। उन्होंने स्वयं हनुमान जी को वहीं समुद्र तट पर बेड़ियों से बांध दिया और आदेश दिया, “अब से तुम यहीं रहकर जगन्नाथपुरी मंदिर की सुरक्षा करोगे, और मैं तुम्हें यहीं से दर्शन दूँगा.” तभी से भगवान हनुमान का यह मंदिर उसी समुद्र तट पर है, और मूर्ति में बजरंगबली बेड़ियों में बंधे हुए हैं।
* कर्तव्य और प्रेम का शाश्वत संतुलन:
यह कथा न केवल मंदिर की सुरक्षा का रहस्य बताती है, बल्कि कर्तव्य, प्रेम और त्याग के गहरे अर्थों को भी दर्शाती है । यह सिखाती है कि कई बार सबसे प्रिय भक्त को भी किसी बड़े, सामूहिक उद्देश्य के लिए कुछ व्यक्तिगत त्याग करना पड़ता है, और भगवान भी अपने भक्तों के व्यापक हित के लिए ऐसे ‘कठोर’ निर्णय ले सकते हैं। यह हनुमान जी के असीम त्याग, उनकी प्रभु के आदेश के प्रति अटूट निष्ठा और पुरी के प्रति उनकी अविचलित भक्ति का भी प्रतीक है। यह मंदिर आज भी पुरी को समुद्री आपदाओं और अन्य खतरों से बचाता है, जो हनुमान जी की निरंतर उपस्थिति और उनकी भक्ति के बल पर प्रभु के संरक्षण का जीवंत प्रमाण है। यहाँ आने वाले हजारों भक्त इस अनूठे संबंध और हनुमान जी की दृढ़ता को प्रणाम करते हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर और कलियुग का अंत: भविष्य मलिका ग्रंथ की भविष्यवाणी – संकेत, सत्य और आशा
जगन्नाथ पुरी से जुड़े कुछ संकेत, विशेषकर संत अच्युतानंद दास द्वारा रचित ग्रंथ ‘भविष्य मलिका’ की भविष्यवाणियां, कलियुग के अंत और वैश्विक घटनाओं को लेकर गहन चिंतन और जिज्ञासा का विषय हैं। यह ग्रंथ 16वीं सदी में लिखा गया था और इसने कई ऐतिहासिक घटनाओं की अचूक भविष्यवाणी की है, जिससे इसकी प्रामाणिकता पर विश्वास बढ़ता है।
* भविष्य मलिका और उसके रहस्यदर्शी लेखक:
संत अच्युतानंद दास ओडिशा के पुरी के निवासी थे, और उन्होंने लगभग 600 वर्ष पहले भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं पर ‘भविष्य मलिका’ नामक एक दिव्य ग्रंथ लिखा था। उन्हें भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान था, और उनकी भविष्यवाणियां असाधारण रूप से सटीक रही हैं। अरब से आए मुगलों का भारत पर शासन, बीसवीं सदी की प्लेग महामारी, 21वीं सदी की कोरोना महामारी, और 1970 का भीषण बांग्लादेश चक्रवात जैसी घटनाएँ उनकी भविष्यवाणियों में शामिल हैं, जो सत्य सिद्ध हुई हैं। उनकी कई भविष्यवाणियां सीधे जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी हुई हैं, जिससे इस ग्रंथ का महत्व और भी गहरा हो जाता है।
* जगन्नाथ मंदिर से जुड़े प्रमुख संकेत और उनकी व्याख्या:
* 600 साल पुराने बरगद के पेड़ का गिरना (2019): 2019 में आए चक्रवात फानी (साइक्लोन फानी) के दौरान, जगन्नाथपुरी में स्थित एक अत्यंत प्राचीन, 600 साल पुराना बरगद का पेड़ टूटकर गिर गया था। इस घटना के ठीक छह महीने बाद कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने दस्तक दी, जिसमें लाखों लोगों ने अपने प्राण गंवाए। भविष्य मलिका में इस बरगद के पेड़ के गिरने और उसके बाद आने वाली महामारी का पहले ही उल्लेख कर दिया गया था। यह एक ऐसा असाधारण संयोग था जिसने अनगिनत लोगों को भविष्य मलिका की भविष्यवाणियों पर गंभीरता से विचार करने पर मजबूर कर दिया।
* मंदिर के शिखर पर गिद्धों का बैठना (जुलाई 2020): जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर कभी कोई पक्षी नहीं बैठता और न ही कोई विमान ऊपर से गुजरता है। लेकिन जुलाई 2020 में, एक दिन इस मंदिर के शिखर पर पांच गिद्धों को बैठा देखा गया। ये पक्षी मंदिर के स्तंभ और पवित्र नील चक्र पर बैठे थे। ‘भविष्य मलिका’ में इस घटना का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यह दुनिया के विनाश के अत्यंत निकट आने का एक महत्वपूर्ण संकेत होगा। यह घटना भक्तों और पर्यवेक्षकों दोनों के लिए गहरी चिंता और चिंतन का विषय बनी थी।
* जगन्नाथ मंदिर के शिखर से पत्थर का गिरना: ‘भविष्य मलिका’ में यह भी लिखा है कि जब जगन्नाथ मंदिर के शिखर से पत्थर गिरेंगे, तो यह दुनिया के अंत का संकेत होगा। कुछ वर्ष पहले, मंदिर के ऊपर से एक पत्थर नीचे गिरा। आश्चर्यजनक रूप से, भक्तों की इतनी भारी भीड़ होने के बावजूद, इस पत्थर से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस घटना को कलियुग की चरमसीमा और आने वाले बड़े वैश्विक परिवर्तनों या महाविनाश से जोड़कर देखा जाता है, जो हमें सतर्क रहने की प्रेरणा देती है।
* जगन्नाथ मंदिर के झंडे में आग लगना (19 मार्च 2020): 19 मार्च 2020 को, पापनाशक एकादशी के दिन, जगन्नाथपुरी में प्रज्वलित एक अखंड दीपक की लौ अचानक तेज हवा के कारण उड़कर जगन्नाथ मंदिर के झंडे पर जा गिरी, जिससे झंडे में आग लग गई. शायद ही किसी ने कभी सोचा होगा कि ऐसा भी हो सकता है। झंडे में आग लगने का उल्लेख भी ‘भविष्य मलिका’ में मिलता है। इस घटना के बाद यह कहा जाने लगा कि यह कलियुग के अंत का एक और स्पष्ट संकेत है और दुनिया का महाविनाश भी होने ही वाला है।
* वर्तमान वैश्विक परिस्थितियाँ और भविष्य मलिका का संदेश:
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य, जिसमें रूस और यूक्रेन के बीच तीन वर्षों से चल रहा युद्ध, मध्य पूर्व में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच निरंतर संघर्ष, तथा हाल ही में 13 जून 2025 को इजराइल द्वारा ईरान पर आक्रमण, और फिर 22 जून 2025 को अमेरिका का इजराइल के सहयोग में ईरान पर बम गिराना, जिसके जवाब में ईरान भी अमेरिका पर जवाबी कार्रवाई कर रहा है ।
ये सभी घटनाएँ सचमुच भय और आशंका का माहौल पैदा करती हैं। इसे देखकर डर लगना स्वाभाविक है कि कहीं यह एक बड़े विश्व युद्ध की शुरुआत न हो अगर ऐसा हुआ, तो फिर इस दुनिया को एक भयानक विनाश से कोई नहीं रोक सकता, और ये परिस्थितियाँ ‘भविष्य मलिका’ में वर्णित महाविनाश के संकेतों से मेल खाती प्रतीत होती हैं।
* कलियुग का अंत: सत्य और भ्रम का पर्दाफाश और एक महत्वपूर्ण चेतावनी:
भविष्य मलिका में कुछ अन्य बड़े संकेतों का भी उल्लेख है, जैसे जगन्नाथ पुरी का समुद्र में डूब जाना और यमुना, गंगा, सरस्वती नदियों का पूरी तरह सूख जाना। वर्तमान में, पुरी समुद्र में डूबी नहीं है। सरस्वती नदी धीरे-धीरे अदृश्य हो रही है, यमुना नदी की हालत खराब है, लेकिन गंगा नदी अभी भी अपने युवा स्वरूप में कल-कल करती बह रही है। ये संकेत पूरी तरह से सत्य नहीं हुए हैं।
यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि कुछ लोग ‘भविष्य मलिका’ का हवाला देकर, विशेषकर यूट्यूबर, अपने निजी लाभ के लिए गलत अनुवाद और मनगढ़ंत कहानियों से लोगों में अनावश्यक भय फैला रहे हैं। वे दावा कर रहे हैं कि 2024 के बाद दुनिया खत्म हो जाएगी, भारत पर सभी देश मिलकर आक्रमण करेंगे, और ऐसी ही अन्य डरावनी बातें। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह जो बातें आपको बताई जा रही हैं, ये बिल्कुल भी ‘भविष्य मलिका’ द्वारा प्रमाणित नहीं हैं। कुछ लोग अपने मन से और ‘भविष्य मलिका’ का गलत अनुवाद करके सिर्फ मनगढ़ंत कहानियां सुना रहे हैं और डरा रहे हैं।
‘भविष्य मलिका’ का मूल संदेश हमें “डराना नहीं, बल्कि सतर्क करना” है. यह हमें बताती है कि मानवीय अधर्म और पाप बढ़ने पर प्रकृति और समय किस प्रकार प्रतिक्रिया करेगा। यह हमें चेतावनी देती है कि यदि इंसान अपने आचरण में सुधार नहीं लाते, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। यह ग्रंथ भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के बारे में बताता है ताकि हम आने वाली आपदाओं से निपटने के लिए पहले से ही तैयार रहें और धर्म, नैतिकता व प्रेम के मार्ग पर चलें। हमारे हिंदू धार्मिक ग्रंथों जैसे ‘स्कंदपुराण’, ‘विष्णु पुराण’ ‘भविष्य पुराण’ इत्यादि के अनुसार, कलियुग की कुल आयु 4,32,000 वर्ष है, और अभी कलियुग की लगभग 4,26,000 वर्ष की आयु शेष है। इसका अर्थ है कि कलियुग का अंत अभी बहुत दूर है। इसलिए, इस बात की बिल्कुल भी चिंता न करें। ‘भविष्य मलिका’ का सहारा लेकर गलत अनुवाद कर रहे मनगढ़ंत कहानियों पर विश्वास न करें। यह ग्रंथ हमें अंधकार से प्रकाश की ओर आने की प्रेरणा देता है न कि डराता है।
जगन्नाथ पुरी का हर पहलू, हर परंपरा, हर रहस्य, हमें जीवन, मृत्यु, कर्म, भक्ति और परमात्मा के साथ हमारे संबंध के बारे में कुछ न कुछ सिखाता है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ विज्ञान और आध्यात्मिकता एक साथ मिलते हैं, और मानवीय समझ की सीमाएं टूट जाती हैं, जिससे हम एक उच्चतर सत्य का अनुभव कर सकें।
कहानी जारी है …to be continued…