मुझे खुशी है कि आपको अभी तक का जगन्नाथ पुरी से संबंधित विवरण पसंद आया ।
आइए, इसी अद्भुत और मैत्रीपूर्ण अंदाज़ में जगन्नाथ पुरी मंदिर के बारे में और बातें करते हैं – (part 7)
“पुरी: जगन्नाथ का धाम, जहाँ एकादशी भी करती प्रणाम।
स्वर्गद्वार से गुंडिचा तक, अद्वितीय यात्रा का अनुपम नाम।”
जगन्नाथ पुरी: जहाँ प्रभु स्वयं निवास करते हैं!
नमस्ते!
जगन्नाथ पुरी की अद्भुत दुनिया में आपका स्वागत है!
हमारे प्राचीन ग्रंथ, पुराण, हमें भगवान विष्णु की यात्रा के बारे में एक सुंदर कहानी सुनाते हैं, जब वे अपने दिव्य धाम वैकुंठ से पृथ्वी पर आते हैं। कल्पना कीजिए: सबसे पहले, वे रामेश्वरम में एक पवित्र स्नान करते हैं। फिर, वे द्वारका की ओर बढ़ते हैं, जहाँ पहुँचकर वे अपना सारा साज-श्रृंगार करते हैं। उसके बाद, वे पुरी पहुँचते हैं, जहाँ वे, महान महाप्रभु जगन्नाथ के रूप में, भव्य महाप्रसाद का भोग लगाते हैं। और एक बार जब वे तृप्त हो जाते हैं, तो प्रभु विश्राम के लिए बद्रीनाथ की यात्रा करते हैं, जहाँ वे छह महीने तक शांति से योगनिद्रा में रहते हैं।
क्या यह एक प्यारा चित्र नहीं है? अब, आइए इन यात्राओं से जुड़ी एक और रोमांचक कहानी को जानते हैं।
भगवान विष्णु ने हमारी पृथ्वी को दस अवतारों से धन्य किया है। सतयुग में, उन्होंने बद्री नारायण के रूप में हमें दर्शन दिए, और द्वापर युग में, उन्होंने द्वारकाधीश के रूप में अपनी दिव्य लीलाएँ कीं। त्रेता युग के दौरान, वे रामेश्वरम के रामचंद्र के रूप में आए। जहाँ प्रभु हर युग में प्रकट हुए, वहीं कलियुग का एक विशेष स्थान है। इस युग में, असीम करुणा से, वे अपने आर्च-विग्रह (मूर्ति) के रूप में श्री जगन्नाथ देव बनकर अवतरित हुए।
एक कहानी इस प्रकार है: एक बार भगवान ब्रह्मा ने भगवान विष्णु से पूछा, “मेरे प्रभु, आपने सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों युगों में अवतार लिए और हमेशा मानव कल्याण में लगे रहे। लेकिन कलियुग के मनुष्यों के लिए आपने क्या विधान किया है? उन्हें मुक्ति कैसे मिलेगी?” भगवान ने प्यार से उत्तर दिया, “कलियुग में, मैं पुरी में अपने विग्रह रूप में निवास करूँगा। जो भी उस पवित्र श्री क्षेत्र (पुरी धाम) में आएगा, मैं उसके सभी दुखों को दूर करूँगा और उसे मुक्ति प्रदान करूँगा।” इसीलिए कहा जाता है कि अन्य सभी तीर्थस्थलों की यात्रा करने के बाद, व्यक्ति को निश्चित रूप से इस धाम में आकर पूर्ण पुरुषोत्तम जगन्नाथ के दर्शन करने चाहिए, तभी उनकी अन्य यात्राएँ वास्तव में सफल मानी जाती हैं।
तो, अब तक हमने पुरी के समृद्ध इतिहास और उसकी रहस्यमय कहानियों में झाँका है। अब, आइए मंदिर के अंदर ही चलते हैं ताकि उसकी अद्भुत वास्तुकला, सुंदर मूर्तियों और पवित्र स्थानों के बारे में जान सकें। इस साहसिक यात्रा में आपका स्वागत है,
मेरे मित्र! तो चलिए, मंदिर में प्रवेश करते हैं।
भव्य श्री मंदिर के अंदर कदम रखना
जगन्नाथ पुरी मंदिर को प्यार से श्री मंदिर कहा जाता है। पुरी को स्वयं शंख क्षेत्र के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसका आकार दक्षिणावर्ती शंख जैसा है। इसी पवित्र स्थान के मध्य में, नील पर्वत पर, रहस्यमयी जगन्नाथ मंदिर खड़ा है, जिसे प्यार से “बड़ा-देउल” (बड़ा मंदिर) के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर वास्तव में पूरे जगन्नाथ पुरी में सबसे मनमोहक स्थल है।
पुराने ग्रंथों में उल्लेख है कि राजा इंद्रद्युम्न ने मूल रूप से एक शानदार जगन्नाथ मंदिर बनवाया था। लेकिन समय के साथ, वह नष्ट हो गया। बाद में, 1078 से 1147 ईस्वी के बीच शासन करने वाले शक्तिशाली कलिंग शासक, राजा चोड़ गंगदेव ने इसे एक विजय प्रतीक के रूप में फिर से बनवाया। इस मंदिर के बारे में हमें जो कुछ भी पता है, उसका अधिकांश हिस्सा एक प्राचीन उड़िया पंचांग, “मांदला पांजी” से आता है।
1. गर्भगृह: देवत्व का हृदय
यह मंदिर का सबसे पवित्र और केंद्रीय भाग है। इसमें एक भव्य केंद्रीय शिखर है, जो शंख के आकार का है और जिसे विमान के नाम से जाना जाता है। इसके शीर्ष पर कमल के आकार का एक मुकुट सुशोभित है। इस विशाल शिखर का निचला हिस्सा ही मंदिर का मुख्य ढाँचा बनाता है, और इसके अंदर गर्भगृह (पवित्र स्थान) स्थित है।
गर्भगृह के अंदर, मणि कोठा या रत्न वेदी (जिसे रत्न सिंहासन भी कहा जाता है) नामक एक ऊँची वेदी पर, भगवान जगन्नाथ पूर्व दिशा की ओर अपना शांत कमल-मुख करके विराजमान हैं। उनके उत्तर में श्री बलभद्र और दक्षिण में, ठीक मध्य में, देवी सुभद्रा विराजमान हैं। यह रत्न सिंहासन एक विशेष कला मुगुणी पत्थर से बना है और इसमें अविश्वसनीय रूप से जटिल नक्काशी है। किंवदंती है कि यह सिंहासन हज़ारों शालीग्राम शिलाओं पर बना है, जो नेपाल के राजा द्वारा उपहार में दी गई थीं। केवल विशिष्ट पुजारी, गजपति महाराजा (पुरी के राजा), और नेपाल के राजा ही इस पवित्र सिंहासन पर चढ़ने की अनुमति रखते हैं। तीन मुख्य देवताओं (जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा) के अलावा, आपको यहाँ श्री माधव, श्री लक्ष्मी और देवी सरस्वती भी मिलेंगी।
इस गर्भगृह में आने-जाने के लिए केवल एक ही द्वार है, जिसे कलाघाट द्वार कहते हैं। जब जगन्नाथ को स्वादिष्ट भोग अर्पित किया जाता है, तो इसी द्वार पर एक कपड़ा बाँधा जाता है। बाहर से, मंदिर की ऊँचाई 214 फीट 8 इंच है। विमान के सबसे ऊपर, आपको नीलचक्र और पतितपावन बाना (ध्वज) दिखाई देंगे।
2. जगमोहन: जहाँ भक्त एकत्रित होते हैं
यह वह हॉल है जहाँ नियमित आगंतुक भगवान जगन्नाथ के सुंदर, चंद्रमा जैसे मुख के दर्शन करने आते हैं। इसके तीन द्वार हैं:
* दक्षिण द्वार बाहर की ओर खुलता है।
* पूर्व द्वार नाट्य मंदिर की ओर जाता है और इसे जय विजय द्वार भी कहते हैं।
* उत्तर द्वार रत्न भंडार गृह, यानी मंदिर के खजाने तक पहुँच प्रदान करता है।
3. गरुड़ स्तंभ: प्रिय सेवक का स्थान
नाट्य मंदिर के पश्चिमी भाग में, आपको गरुड़ स्तंभ मिलेगा। गरुड़ भगवान विष्णु का समर्पित वाहन और एक प्रिय सेवक हैं। भक्तों के लिए इस स्तंभ के आधार पर खड़े होकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करना प्रथागत है। यह स्तंभ स्वयं रत्न सिंहासन जितना ही ऊँचा है।
श्री मंदिर के चार पवित्र द्वार
श्री मंदिर में चार मुख्य द्वार हैं, जिनमें से प्रत्येक एक अलग दिशा में है:
* सिंह द्वार (पूर्वी द्वार): यह मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार है। आपको इस द्वार के दोनों ओर भव्य सिंह की मूर्तियाँ दिखाई देंगी। दिलचस्प बात यह है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं इसी द्वार से रथ यात्रा उत्सव के लिए बाहर आते हैं! यहाँ, वैकुंठ के द्वारपाल, जय और विजय, अपनी चतुर्भुज (चार भुजाओं वाले) रूपों में, शंख, गदा और जप माला धारण किए खड़े हैं। यह द्वार अन्य तीनों से बड़ा है और एक मंदिर के आकार में बना है, जिसे “पीढ़ देउल” कहते हैं। इसके बाहरी ऊपरी भाग को करीब से देखें, तो आपको श्री लक्ष्मी देवी और दशावतार (भगवान विष्णु के दस अवतार) की सुंदर मूर्तियाँ दिखाई देंगी।
* हस्ति द्वार (उत्तरी द्वार): इस द्वार का उपयोग मुख्य रूप से नबकलेवर समारोह के लिए दारू (पवित्र लकड़ी) लाने के लिए किया जाता है, जब देवताओं की नई मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। यह द्वार मुक्ति और वैराग्य का प्रतीक है। आपको सीधे इस द्वार पर हाथी नहीं दिखेंगे, लेकिन अंदर प्रवेश करने पर, आपको कुर्मा प्राचीर के द्वार पर दो विशाल हाथी दिखाई देंगे। माना जाता है कि अन्य देवता भगवान से मिलने के लिए इसी द्वार से प्रवेश करते हैं।
* अश्व द्वार (दक्षिणी द्वार): दक्षिण दिशा में होने के कारण इसे दक्षिणी द्वार कहा जाता है। इस प्रवेश द्वार पर दो सैनिक भव्य घोड़ों पर सवार होकर हथियार लिए खड़े हैं। किंवदंती है कि ये स्वयं भगवान जगन्नाथ और बलभद्र हैं, जो राजा पुरुषोत्तम देव को उनके कांची विजय (विजय अभियान) में सहायता करने गए थे। यह द्वार मुख्य रूप से पुरी के गजपति राजाओं और शाही परिवार के सदस्यों के प्रवेश के लिए उपयोग किया जाता था। हालाँकि, रानियाँ अक्सर सिंह द्वार से ही प्रवेश करना पसंद करती थीं।
* व्याघ्र द्वार (पश्चिमी द्वार): इसे पश्चिमी द्वार भी कहते हैं। इसके दोनों ओर बाघ की मूर्तियाँ हैं, जो भौतिक इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस द्वार का उपयोग मुख्य रूप से तांत्रिक साधु, अघोरी बाबा और देवदासियाँ करती थीं।
नीलचक्र और पतितपावन बाना: शिखर पर प्रतीक
* नीलचक्र (नीला चक्र): श्री मंदिर के मुख्य शिखर पर, आपको भगवान कृष्ण का प्राथमिक हथियार, सुदर्शन चक्र, जिसे नीलचक्र भी कहते हैं, दिखाई देगा। यह चक्र अष्टधातु से बना है। इसकी परिधि लगभग 36 फीट और ऊँचाई 15 फीट है, जिसमें आठ आरियाँ (स्पोक्स) हैं।
* पतितपावन बाना (पतितों के उद्धारकर्ता का ध्वज): यह कपड़े से बना एक त्रिकोणीय ध्वज है, जिसे एक 40 फुट ऊँचे बाँस के खंभे के साथ नीलचक्र पर फहराया जाता है। कहा जाता है कि बहुत पहले, यह ध्वज इतना विशाल था कि यह समुद्र को छूता था, और तीर्थयात्री स्नान करते समय इसे पकड़े रहते थे! समय के साथ, इसकी लंबाई कम हो गई है और अब यह लगभग 14 हाथ (लगभग 21 फीट) का रह गया है।
बाहरी परिक्षेत्र की खोज: पवित्र स्थानों की एक यात्रा
जैसे ही हम सिंह द्वार से प्रवेश करते हैं, हम मंदिर के बाहरी परिसर में कई आकर्षक स्थानों को देखेंगे, जो कुर्मा प्राचीर और मेघनाथ प्राचीर के चारों ओर फैले हुए हैं।
अरुण स्तंभ (अरुण का खंभा)
सिंह द्वार से लगभग 20 फीट की दूरी पर, मुख्य जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने से पहले ही, एक विशाल और बेहद आकर्षक ऊँचा स्तंभ खड़ा है जिसे अरुण स्तंभ कहते हैं। आप इस स्तंभ के ऊपर सूर्य देव के सारथी अरुण को देखेंगे।
सिंह द्वार (भव्य सिंह द्वार)
यह वास्तव में मंदिर में प्रवेश का मुख्य मार्ग है। दिलचस्प बात यह है कि ओडिशा में, हर मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार को सिंह द्वार कहने की परंपरा है। यह राजपथ (बड़ा दंडा) से आने वाले भक्तों के लिए या जगन्नाथ के दर्शन करने वाले भक्तों के लिए प्राथमिक प्रवेश द्वार है। भगवान जगन्नाथ स्वयं इसी द्वार से रथ यात्रा उत्सव के लिए बाहर आते हैं! यहाँ, आपको वैकुंठ के द्वारपाल, जय और विजय, अपनी चतुर्भुज (चार भुजाओं वाले) रूपों में, शंख, गदा और जपमाला धारण किए खड़े दिखाई देंगे। यह द्वार अन्य तीनों से बड़ा है और एक मंदिर के आकार में बना है, जिसे “पीढ़ देउल” कहते हैं। इसके बाहरी ऊपरी भाग पर करीब से देखें, तो आपको श्री लक्ष्मी देवी और दशावतार (भगवान विष्णु के दस अवतार) की सुंदर मूर्तियाँ दिखाई देंगी।
पतितपावन जगन्नाथ जी
सिंह द्वार के पास उत्तरी दीवार पर, पूर्व की ओर मुख करके, भगवान जगन्नाथ सभी को अपने धन्य दर्शन दे रहे हैं। उन्हें पतितपावन जगन्नाथ (पतितों के उद्धारकर्ता) के रूप में जाना जाता है। आप उन्हें बड़ा दंडा (मुख्य सड़क) से अरुण स्तंभ के पीछे से भी देख सकते हैं।
18-भुजा वाले नृसिंहदेव
सिंह द्वार के ठीक अंदर, पतितपावन जगन्नाथ के सामने, नृसिंहदेव की प्रतिदिन पूजा की जाती है। कल्पना कीजिए: एक अठारह-भुजा वाले भगवान, एक ऐसे मंदिर में जो इतना छोटा लगता है!
फतेह हनुमान
सिंह द्वार पर स्थित हनुमान प्रतिमा को फते हनुमान के नाम से जाना जाता है।
यम शिला (यम का पत्थर)
जैसे ही आप सिंह द्वार से आगे बढ़ते हैं और एक या दो सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, आपको एक काले रंग की सीढ़ी दिखाई देगी जिसे यम शिला या यम दंडी कहते हैं। ज़्यादातर भक्त या आगंतुक इसे देख भी नहीं पाते।
माना जाता है कि मंदिर में प्रवेश करते समय, आपको इस पर कदम रखना चाहिए, क्योंकि यह आपके सभी पापों को शुद्ध करता है, जिससे आप पाप-मुक्त होकर जगन्नाथ के दर्शन कर सकते हैं। हालाँकि, यदि आप मंदिर से बाहर निकलते समय इस पर कदम रखते हैं, तो आपके जगन्नाथ दर्शन और सेवा के सभी आध्यात्मिक लाभ नष्ट हो जाते हैं, और आप दुर्भाग्य को आमंत्रित करते हैं।
इसके पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है: जब भगवान जगन्नाथ श्री क्षेत्र में बस गए, तो जो भी वहाँ आता था, वह अपने कर्मों से मुक्त हो जाता था और मोक्ष प्राप्त कर लेता था। इससे दुखी होकर, मृत्यु के देवता यमराज ने भगवान से प्रार्थना की कि यदि ऐसा होता रहा, तो यमलोक (यम का निवास) खाली हो जाएगा, और ब्रह्मांड के नियम टूट जाएँगे। इसलिए, भगवान जगन्नाथ ने अपनी तीसरी सीढ़ी यमराज को दे दी, यह घोषणा करते हुए कि जो कोई भी दर्शन के बाद लौटते समय इस पर कदम रखेगा, उसके सभी अच्छे कर्म तुरंत नष्ट हो जाएँगे और उसे भयानक परिणाम भुगतने होंगे।
22 पाहच (22 सीढ़ियाँ)
उड़िया में, सीढ़ियों को पाहच कहा जाता है। जैसे ही आप सिंह द्वार के मेहराब को पार करते हैं, ये अत्यंत पवित्र सीढ़ियाँ शुरू हो जाती हैं। आपको श्री मंदिर के भीतरी भाग में प्रवेश करने के लिए इन पर चढ़ना होगा। अरुण स्तंभ के आँगन से लेकर दूसरी घेराबंदी, कुर्मा प्राचीर तक, या आनंद बाज़ार के मेहराब तक उन्नीस सीढ़ियाँ हैं। शेष सीढ़ियाँ नाट्य मंदिर पर चढ़ते समय मिलती हैं। ये सीढ़ियाँ 70 फीट लंबी, छह फीट चौड़ी और छह इंच ऊँची हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि इन 22 सीढ़ियों पर चढ़ने से 22 प्रकार की आध्यात्मिक अशुद्धियों को दूर करने में मदद मिलती है। पहले, इन्हीं सीढ़ियों के दोनों ओर महाप्रसाद बेचा जाता था, और भक्त वहीं बैठकर उसका आनंद लेते थे। हालाँकि, यह प्रथा अब बंद हो गई है। महालया और अमावस्या के दिनों में, लोग यहाँ अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान (पितृ अनुष्ठान) करने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान, पूर्वज आत्माएँ भी इन सीढ़ियों पर मुक्ति की आशा में एकत्रित होती हैं। इसलिए, कई लोग यहीं श्राद्ध (पूर्वज पूजा) करना पसंद करते हैं।
काशी विश्वेश्वर या काशी विश्वनाथ
सिंह द्वार को पार करने और 22 सीढ़ियों की तीसरी सीढ़ी पर चढ़ने के बाद, आपके बाईं ओर, आपको श्री काशी विश्वनाथ का शिवलिंग एक छोटे मंदिर में मिलेगा, जो मेघनाथ प्राचीर से सटा हुआ है।
किंवदंती है कि भगवान शिव, एक बार अहंकार से भरकर, जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए पुरी धाम आए थे। लेकिन अपने अभिमान के कारण, उन्हें श्री मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिली। इसलिए, वे तीसरी सीढ़ी पर बैठकर, हमेशा नीलचक्र को निहारते रहते हैं। माना जाता है कि उनके यहाँ मुड़कर उन्हें नमन किए बिना जगन्नाथ के दर्शन अधूरे रह जाते हैं।
भगवान श्री राम
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, उत्तर दिशा की ओर मुख करके, भगवान श्री राम की सुंदर मूर्तियाँ एक छोटे मंदिर में स्थापित हैं। यहाँ, भगवान अपने पूरे दिव्य दरबार के साथ विराजमान हैं।
नृसिंह मंदिर
श्री राम मंदिर के पास, एक छोटे से मंदिर में, देवता इतने गहराई में स्थापित हैं कि वे स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते।
राधा कृष्ण मंदिर
22 सीढ़ियों से बाईं ओर मुड़ते ही, यह मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है।
भेंट मंडप
जब भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से लौटते हैं और सिंह द्वार के बाहर अपने रथ पर होते हैं, तो यहीं पर वे श्री लक्ष्मी देवी को मनाते हैं और उन्हें रसगुल्ला भेंट करते हैं। एक लोकप्रिय कहानी है: जब भगवान अपने भाई-बहनों के साथ रथ यात्रा के लिए निकलते हैं, तो माता लक्ष्मी उनसे नाराज़ हो जाती हैं। और जब वे लौटते हैं, तो वह उन्हें अंदर आने नहीं देतीं! इसलिए, भगवान वहीं रुकते हैं ताकि माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर सकें, और फिर मंदिर में प्रवेश करते हैं। यह सुंदर भाव दर्शाता है कि कैसे भगवान सामान्य व्यक्ति के जीवन से जुड़ते हैं, परिवार और गृहस्थ संबंधों की नींव को मजबूत करते हैं।
जगन्नाथ की रसोई
जैसे ही आप 22 सीढ़ियाँ चढ़ते हैं और कुर्मा प्राचीर के मुख्य मेहराब में प्रवेश करने से पहले, आपके बाईं ओर, दक्षिण-पूर्व कोने में, आपको भगवान जगन्नाथ की रसोई मिलेगी, जो दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है! इसमें प्रवेश के लिए सामान्य टिकट खरीदना होता है।
शिव ईशानेश्वर महादेव
यह मंदिर रसोई के चारों ओर परिक्रमा पूरी करने के बाद और दक्षिण द्वार के आँगन में प्रवेश करने से पहले स्थित है।
अग्निश्वर महादेव
यह मंदिर रसोई के पास स्थित है।
दक्षिण द्वार का आँगन
यदि आप दक्षिण द्वार से प्रवेश करते हैं, तो आपको निम्नलिखित मंदिरों के दर्शन होंगे:
* रोष महावीर मंदिर: इस मंदिर में हनुमानजी की खड़ी प्रतिमा है।
* रामचंद्र मंदिर
* शतभुज गौरांग मंदिर
* बूढ़ी माँ मंदिर
पश्चिम द्वार का आँगन
* चार धाम मंदिर
* कान पटा हनुमान
* नीलाद्रि विहार
* वैद्यनाथ महादेव
* कोहली बैकुंठ
* तपस्वी हनुमान
* उत्तरायणी देवी
* श्री शीतला देवी
* स्वर्ण कूप (स्वर्ण कुआँ)
* परशु नाथ
* धौलेश्वर महादेव
* आनंद बाज़ार
* स्नान मंडप (स्नान मंच), और भी बहुत कुछ।
तीसरा भीतरी परिक्षेत्र की खोज
जब आप सिंह द्वार से प्रवेश करते हैं और 22 सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, तो आप कुर्मा प्राचीर के द्वार से अंदर प्रवेश करते हैं। यह पूर्वी द्वार एक मंदिर के आकार में बना है, जो प्रवेश और निकास दोनों का काम करता है। जैसे ही आप इस आँगन में कदम रखते हैं और बाईं ओर मुड़ते हैं, आपको कई मंदिर दिखाई देंगे, जैसे:
* आग्नेश्वर महादेव
* भोग मंडप का मार्ग
* सत्यनारायण मंदिर
* वृंदावन चंद्र ठाकुर मंदिर
* राधारमण और राधा कृष्ण मंदिर
* सहदेव हरि मंदिर
* रसोईघर
* बट जगन्नाथ मंदिर
* कल्पवृक्ष कल्प बट (इच्छा पूरी करने वाला बरगद का पेड़)
* पाद पद्म (चरण कमल)
* बट गणेश
* लोकनाथ महादेव
* बट मंगला मंदिर
* 12 पुरुषोत्तम
* यम रामेश्वर महादेव मंदिर
* नील कंठ महादेव मंदिर
* मार्कंडेय महादेव मंदिर
* कपालमोचन महादेव मंदिर
* बट बलभद्र मंदिर
* इंद्राणी मंदिर
* राधा कृष्ण मंदिर
* कुट्टम चंडी मंदिर
* अनंत वासुदेव मंदिर
* क्षेत्रपाल मंदिर
* मुक्तेश्वर महादेव मंदिर
* सूर्य नारायण मंदिर
* नृसिंह मंदिर
* वराह मंदिर
* जल क्रीड़ा मंदिर (जल क्रीड़ा मंदिर)
* रोहिणी कुंड
* बेनी माधव मंदिर
* एकादशी मंदिर: कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने इस मंदिर में एकादशी को ‘बांध रखा’ है। इसी कारण, यहाँ के निवासी पारंपरिक एकादशी व्रत का पालन नहीं करते और प्रतिदिन चावल खा सकते हैं! यहाँ एकादशी पर कोई प्रतिबंध नहीं है। किंवदंती है कि एकादशी ने एक बार भगवान के भोग को कम करने की कोशिश की थी, और इसीलिए भगवान ने ऐसा किया था।
* नील माधव मंदिर
* श्री महालक्ष्मी मंदिर
* पातालेश्वर महादेव मंदिर
* नवग्रह मंदिर, और भी बहुत कुछ।
महोदधि महाप्रभु का समुद्र स्नान और अन्य सुंदर स्थल
* मार्कंडेय सरोवर
* श्वेत गंगा
* इंद्रद्युम्न सरोवर
* श्री नरेंद्र सरोवर
पंच शंभू (भगवान शिव के पाँच रूप)
* श्री यमेश्वर महादेव
* श्री नील कंठेश्वर महादेव
* श्री लोकनाथ महादेव
* श्री कपालमोचन महादेव
* श्री मार्कंडेश्वर महादेव
अठारह नाला सेतु (अठारह मेहराब वाला पुल)
गुंडिचा मंदिर: भगवान का जन्मस्थान
कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ रानी गुंडिचा के पुत्र बने। जब जगन्नाथ स्वामी पहली बार गुंडिचा में प्रकट हुए, तो उन्होंने राजा इंद्रद्युम्न से एक वरदान माँगने को कहा। राजा के कोई पुत्र न होने के कारण, उन्होंने यह वरदान माँगा कि उनके किसी भी वंशज को भगवान जगन्नाथ की संपत्ति पर दावा करने का अधिकार न हो। रानी गुंडिचा यह सुनकर बहुत दुखी हुईं कि उन्हें कभी कोई पुत्र नहीं होगा। करुणा से भरकर, भगवान जगन्नाथ ने रानी को सांत्वना दी, यह आश्वासन देते हुए कि वे स्वयं उनके पुत्र बनेंगे। अपार प्रेम से, भगवान जगन्नाथ ने रानी के हृदय को खुशी से भर दिया, जब उन्होंने उनसे कहा, “तुम्हारी खुशी के लिए, मैं साल में एक बार यहाँ गुंडिचा में आऊँगा।”
गुंडिचा मंदिर, श्री मंदिर से लगभग 2.5 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित एक बहुत ही खास जगह है। यहीं पर भगवान जगन्नाथ, बलदेव और सुभद्रा की मूर्तियाँ पवित्र लकड़ी (दारू) से गढ़ी गई थीं। इसीलिए इस स्थान को भगवान जगन्नाथ का जन्मस्थान माना जाता है।
हर साल, भगवान जगन्नाथ, अपने भाई-बहनों बलभद्र और देवी सुभद्रा के साथ, 9 दिनों के लिए श्री मंदिर से बाहर आते हैं। इस यात्रा को रथ यात्रा या गुंडिचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। वे 7 दिनों तक गुंडिचा मंदिर के अंदर पूजा और सेवा स्वीकार करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि अन्य दिनों में यहाँ कोई और मूर्तियाँ नहीं रखी जातीं। उन सात दिनों के लिए भोग तैयार करने के लिए एक विशेष रसोईघर है, जहाँ विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन पकाए जाते हैं और भगवान जगन्नाथ को अर्पित किए जाते हैं। माना जाता है कि उन सात दिनों में यहाँ एक बार दर्शन करना श्री मंदिर में दस बार दर्शन करने के बराबर है! अन्य पुराणों में भी कहा गया है कि यहाँ जगन्नाथ के दर्शन तुरंत जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाते हैं। यहाँ एक बार दर्शन श्री मंदिर के सैकड़ों दर्शन के बराबर है।
यज्ञ नृसिंह
यह गुंडिचा मंदिर से इंद्रद्युम्न सरोवर की ओर जाने वाले रास्ते की बाहरी दीवार से सटा हुआ एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है।
स्वर्गद्वार (स्वर्ग का द्वार)
स्वर्गद्वार का शाब्दिक अर्थ ‘स्वर्ग का द्वार’ है। कहा जाता है कि महाराजा इंद्रद्युम्न के अनुरोध पर, भगवान ब्रह्मा, अन्य देवताओं के साथ, इसी स्थान से श्री विग्रहों को स्थापित करने के लिए श्री क्षेत्र आए थे। उस अवतरण स्थान को चिह्नित करने के लिए वहाँ एक पत्थर गड़ा हुआ है, जिसे स्वर्गद्वार साक्षी कहा जाता है। कुछ लोग इसे स्वर्गद्वार की सीढ़ियाँ भी कहते हैं। अतीत में, यह क्षेत्र समुद्र तट के किनारे काफी फैला हुआ था, लेकिन अब यहाँ कई इमारतें बन गई हैं। यहाँ एक छोटा सा श्मशान घाट भी है, जिसे स्वर्गद्वार के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार यहाँ किया जाता है, उसकी आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। प्रत्येक अमावस्या (अमावस्या) के दिन, भगवान जगन्नाथ अपने श्री नारायण रूप में स्वर्गद्वार पर विशाल समुद्र तट में स्नान करने आते हैं।
चक्र तीर्थ
श्री मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर उत्तर-पूर्व में, समुद्र तट पर स्थित है चक्र तीर्थ। पहले, भार्गवी नदी की एक शाखा यहीं पर समुद्र से मिलती थी, और इसे “बाकी मुहाना” कहा जाता था। प्राचीन कथाओं के अनुसार, महाराजा इंद्रद्युम्न को सबसे पहले पवित्र लकड़ी, दारुब्रह्मा (देवताओं को बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी), यहीं से प्राप्त हुई थी। उस पर उन्हें शंख, चक्र, गदा और पद्म (कमल) के शुभ चिह्न मिले थे। और इसी पवित्र लकड़ी से श्री जगन्नाथ, बलदेव और सुभद्रा की मूर्तियाँ गढ़ी गई थीं।
यहाँ से थोड़ी दूरी पर बेड़ी हनुमान हैं। उनके सामने, एक छोटे मंदिर में, चतुर्भुज (चार भुजाओं वाले) चक्र नारायण की भी पूजा की जाती है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के ससुर वरुण (श्री लक्ष्मी देवी के पिता) की मूर्ति भी है। और उसी मंदिर में भगवान अनंत नारायण और चक्र नृसिंह भी हैं। इस पूरे मंदिर परिसर को प्यार से जगन्नाथजी के ससुराल के रूप में जाना जाता है!
बट मंगला
बट मंगला मंदिर एक छोटा मंदिर है, जिसकी ऊँचाई केवल लगभग 15 फीट है, और यह बट मंगला से भुवनेश्वर की ओर जाते समय सड़क के किनारे, लगभग तीन किलोमीटर पूर्व में स्थित है।
आलम चंडी (मौसी माँ मंदिर)
यह देवी अर्धाशिनी देवी के नाम से भी व्यापक रूप से प्रसिद्ध हैं। इन्हें प्यार से भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहा जाता है। आप उन्हें बड़ा दंडा (मुख्य सड़क) पर, श्री मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच स्थित पाएंगे। उन्हें आठ महाशक्तियों में से एक माना जाता है। किंवदंती है कि एक महान प्रलय के दौरान, इस देवी ने आधे बाढ़ के पानी को पी लिया था, इसीलिए उन्हें अर्धाशिनी देवी नाम मिला। रथ यात्रा के दौरान, तीनों रथ यहाँ रुकते हैं, और पोड़ा पीठा (एक पारंपरिक केक) को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
कुछ का मानना है कि उनका नाम मटियारी नदी को पीने के कारण पड़ा। उनकी मूर्ति आश्चर्यजनक रूप से सुभद्रा जैसी दिखती है। इस मंदिर का निर्माण बड़केशरी ने करवाया था।
चर्चिका देवी
डोलवेदी
बेड़ी हनुमान –
श्री क्षेत्र के क्षेत्रपाल (संरक्षक देवता) के रूप में सेवा करते हैं। पंच शंभू (शिव के पाँच रूप) के साथ, अष्ट महावीर (हनुमान के आठ रूप) और अष्ट देवी (आठ देवियाँ) भी इस पवित्र धाम की रक्षा के लिए नियुक्त हैं।
अष्ट महावीर (हनुमान) के नाम हैं:
* सिद्ध महावीर
* दरिया महावीर
* कानफटा महावीर
* वर्गीय महावीर
* मसानि महावीर
* पंचमुखी महावीर
* फतेह महावीर
* सिरूल महावीर
श्री मंदिर के द्वारों पर चार हनुमान रक्षक के रूप में विराजमान हैं: सिंह द्वार पर फते हनुमान, पश्चिम द्वार पर विक्रम हनुमान या कानपटा हनुमान, उत्तर द्वार पर तपस्वी हनुमान, और दक्षिण में बारा भाई हनुमान।
अष्ट चंडी (आठ देवियाँ):
* बट मंगला
* विमला
* सर्वमंगला
* अर्धाशिनी
* अलम्बा
* कालरात्रि
* मारीचिका
* चंडीरूपा
दुर्गा के विभिन्न रूपों को देखकर, भगवान शिव ने स्वयं को अष्ट दिक्पालों (आठ दिशाओं के संरक्षक) के रूप में प्रकट किया, जो हैं:
* कपालमोचन
* यम्श्वर
* मार्कंडेश्वर
* बिल्बेश्वर
* वटेश्वर
* नीलकंठ
* ईश्नेश्वर
*धामेश्वर -जो मध्य में रहते हैं ।
श्री राधाकांत मठ और अन्य महत्वपूर्ण मठ।
मुझे उम्मीद है कि जगन्नाथ पुरी मंदिर के माध्यम से यह दोस्ताना यात्रा आपको उतनी ही मोहक लगी होगी जितनी मुझे इसका वर्णन करने में लगा । धन्यवाद !