सोमनाथ मंदिर: भारत का प्रथम ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ मंदिर: भारत का प्रथम ज्योतिर्लिंग और उसके अनसुलझे रहस्य

सोमनाथ: भारत का प्रथम ज्योतिर्लिंग। यह पवित्र स्थल गुजरात के वेरावल में, अरब सागर के तट पर स्थित है, जहाँ सदियों से आस्था और इतिहास का संगम है। सोमनाथ मंदिर सिर्फ एक ढाँचा नहीं, बल्कि भारत की अविनाशी आत्मा का प्रतीक है जिसने हर विध्वंस के बाद पुनर्जन्म लिया। यह रहस्यों का एक विशाल भंडार भी है, जो समय और तूफानों दोनों को चुनौती देता है।”

 दोस्तों

सावन का महीना चल रहा है । ऐसे में इस पावन महीने में क्यों ना हम देवों के देव महादेव की एक एक करके सभी कथाओं को जानें । महादेव पर कुछ भी लिख पाना और पढ़ पाना संभव नहीं है जब तक स्वयं महादेव का आशीर्वाद ना मिले।हम सब के महादेव की कथा तो सागर में गागर भरने जैसी है । पर अगर महादेव चाह जाए तो सब संभव हो जाता है ।

तो आज से हम सावन शृंखला के अंतर्गत बारह ज्योतिर्लिंग की मानसिक यात्रा करेंगे और साथ ही महादेव की कुछ अन्य कथाओं में डूबेंगे । तो चलिए शुरू करते हैं आज की यात्रा ।

                  🔱 हर हर महादेव 🔱

 आज की हमारी यात्रा सोमनाथ से शुरू होती हैं क्योंकि सोमनाथ को प्रथम ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। इसलिए सोमनाथ से ही शुरू करते है बारह ज्योतिर्लिंग की यात्रा ।

सोमनाथ: सिर्फ एक मंदिर नहीं, भारत की सनातन आत्मा का प्रतीक

गुजरात के वेरावल में, अरब सागर के किनारे, जहाँ लहरें सदियों से एक दिव्य गाथा गुनगुना रही हैं, वहाँ खड़ा है सोमनाथ मंदिर। यह सिर्फ पत्थरों का एक ढांचा नहीं, बल्कि भारत की अविनाशी आत्मा का जीवंत प्रतीक है। यह वह भूमि है जहाँ पत्थर भी चीख उठे, जहाँ इतिहास ने बर्बरता देखी और आस्था ने हर बार पुनर्जन्म लिया। सोमनाथ—पहला ज्योतिर्लिंग—सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि रहस्यों का एक विशाल भंडार है, एक ऐसी कहानी जो समय और तूफानों दोनों को चुनौती देती है।

पौराणिक जड़ें: चंद्रदेव की तपस्या और पहले ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य

हमारी यात्रा सत्य युग से शुरू होती है, उस काल से जब देवता और असुर एक साथ विचरण करते थे। स्कंद पुराण और ऋग्वेद के अनुसार, चंद्रदेव (चंद्रमा), जो अपने रूप और तेज के लिए विख्यात थे, ने प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं से विवाह किया। लेकिन उनका प्रेम सिर्फ रोहिणी तक सीमित रहा, जिससे अन्य 26 कन्याएं दुखी हुईं और अपने पिता दक्ष से शिकायत की। क्रोधित दक्ष ने चंद्रदेव को एक भयंकर श्राप दिया, जिससे उनका तेज धीरे-धीरे क्षीण होने लगा, शरीर कमजोर पड़ गया और सुंदर मुख मुरझा गया। यह श्राप इतना प्रबल था कि चंद्रदेव का अस्तित्व ही खतरे में आ गया।

बेबस और दुखी चंद्रदेव ने देवों के देव ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रभास पाटन जाने का मार्ग दिखाया, जहाँ त्रिवेणी संगम (कपिला, हिरण और सरस्वती नदियों का पवित्र मिलन) होता है। यह संगम आज भी गुजरात के सौराष्ट्र में सोमनाथ के पास बहता है और न केवल धार्मिक रूप से पवित्र है, बल्कि इसका भौगोलिक महत्व भी है, क्योंकि यहाँ तीन धाराएँ एक साथ मिलती हैं। यहीं पर, चंद्रदेव ने एक शिवलिंग स्थापित किया और दिन-रात कठिन तपस्या में लीन हो गए। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि स्वयं भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए। शिवजी ने उन्हें दक्ष के श्राप से मुक्ति दी, लेकिन चूंकि श्राप की शक्ति अत्यधिक थी, उसे पूरी तरह से मिटाया नहीं जा सकता था। अतः शिवजी ने वरदान दिया कि चंद्र का तेज हर महीने 15 दिन तक घटेगा (कृष्ण पक्ष) और अगले 15 दिनों में पुनः पूर्ण हो जाएगा (शुक्ल पक्ष)। यही कारण है कि आज भी हम चंद्रमा को घटते-बढ़ते देखते हैं, जो इस दिव्य वरदान का एक जीवित प्रमाण है।

चंद्रदेव ने शिवजी से एक और वरदान मांगा – कि वे हमेशा के लिए इस शिवलिंग में विराजमान रहें ताकि भक्तों को उनके दर्शन और आशीर्वाद मिल सकें। शिवजी ने यह वरदान स्वीकार किया और तब से यह शिवलिंग सोमनाथ के नाम से विख्यात हुआ – ‘सोम’ यानी चंद्र और ‘नाथ’ यानी भगवान। इस प्रकार, सोमनाथ न केवल चंद्रदेव की मुक्ति का प्रतीक बना, बल्कि भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला, जो पृथ्वी पर उनकी दिव्य उपस्थिति का सबसे प्राचीन प्रमाण माना जाता है।

लेकिन सोमनाथ की पौराणिक कथा इससे भी गहरी है। स्कंद पुराण के अनुसार, यह मंदिर सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि हर युग में अलग-अलग स्वरूपों में बना:

 * सतयुग में चंद्रदेव ने इसे सोने से बनवाया। कहते हैं, वह मंदिर इतना चमकता था कि उसका तेज स्वर्ग तक जाता था और उसकी आभा से पूरा क्षेत्र प्रकाशित रहता था।

 * त्रेतायुग में रावण, जो शिव का महान भक्त था, ने इसे चांदी से निर्मित किया। यह दर्शाता है कि यह मंदिर युगों-युगों से शिव भक्तों के लिए पूजनीय रहा है।

 * द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने अपने हाथों से इसे चंदन की लकड़ी से सजाया, जो इस मंदिर के प्रति देवताओं और महापुरुषों के अगाध प्रेम को दर्शाता है।

क्या ये सोने, चांदी और चंदन के मंदिर सिर्फ कथाएँ हैं, या उनमें कोई सच्चाई छिपी है? क्या उन भव्य ढाँचों के अवशेष आज भी मंदिर के नीचे कहीं दबे हुए हैं, जो प्राचीन भारत की अद्भुत वास्तुकला और समृद्धि के साक्षी रहे होंगे? और त्रिवेणी संगम का यह स्थान क्यों इतना खास है, जहाँ का पानी न केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि मन को भी शांति और मोक्ष की अनुभूति देता है? यह पहला ज्योतिर्लिंग, जो हजारों सालों से लोगों के दिलों में बसा है, अपनी कहानी के साथ अनगिनत सवाल छोड़ जाता है, जो आज भी जिज्ञासुओं को आकर्षित करते हैं।

विध्वंस और पुनर्जन्म: सोमनाथ की अविनाशी गाथा

सोमनाथ का सफर सिर्फ पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह विध्वंस और पुनर्जन्म की एक अद्भुत ऐतिहासिक गाथा भी है। यह वह मंदिर है जो बार-बार टूटा, लेकिन हर बार और भी शानदार रूप में खड़ा हुआ, मानो कोई दिव्य शक्ति इसकी रक्षा करती हो, और इसकी नींव में ही अमरता का मंत्र छिपा हो।

नौवीं शताब्दी में, गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा नागभट्ट द्वितीय (825-833 ईस्वी) सोमनाथ के पवित्र स्थल पर आए। शिलालेखों के अनुसार, उन्होंने यहाँ के सोमेश्वर शिवलिंग के दर्शन किए और इसकी महिमा को और बढ़ाया, जिससे यह उस समय एक प्रमुख तीर्थस्थल बन गया। फिर दसवीं शताब्दी में, चालुक्य वंश के राजा मूलराज ने यहाँ एक शानदार मंदिर का निर्माण कराया। कहते हैं, यह मंदिर इतना भव्य था कि उसकी चमक समुद्र पार तक जाती थी, जो उसकी स्थापत्य कला और समृद्धि का प्रमाण थी।

लेकिन सोमनाथ का यह शानदार सफर 1025 ईस्वी में एक बड़े संकट से टकराया। अफगान शासक महमूद गजनवी ने अपनी विशाल सेना के साथ वेरावल पर हमला किया। अलबरूनी, जो उसके साथ था और जिसने अपनी किताब “तारीख-ए-हिंद” लिखी, कहता है कि सोमनाथ का खजाना इतना विशाल था कि उसकी चमक दुनियाभर में मशहूर थी। गजनवी ने मंदिर का खजाना लूटा और शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया, एक ऐसा कृत्य जिसने लाखों भक्तों की भावनाओं को आहत किया। अलबरूनी के अनुसार, उस भयानक रात हजारों भक्तों को बेरहमी से मार डाला गया। वह रात इतनी भयावह थी कि “पत्थर भी चीख उठे”, लेकिन मंदिर की आत्मा को कोई नहीं मिटा सका। यह हमला केवल खजाने के लिए था या इसके पीछे कोई गहरा राजनीतिक या धार्मिक एजेंडा था, यह आज भी बहस का विषय है।

विध्वंस का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका:

 * 1299 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी के सिपाही उलूग खाँ के नेतृत्व में सोमनाथ पर दोबारा हमला किया गया। इस बार भी मंदिर का खजाना लूटा गया और उसकी भव्यता को भारी नुकसान पहुँचाया गया। हालाँकि, जालोर के वीर वीरमदेव ने खिलजी की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी और कुछ खजाने को वापस लेने का प्रयास किया। वीरमदेव की हिम्मत ने मंदिर की रूह को जिंदा रखा, लेकिन क्या वह खजाना कभी पूरी तरह वापस आया?

 * 1395 ईस्वी में जफर खान, जो गुजरात का गवर्नर था, ने मंदिर पर फिर से हमला किया।

 * फिर 1451 ईस्वी में महमूद बेगड़ा ने इसे निशाना बनाया।

 * और सबसे बड़ा संकट 17वीं शताब्दी में आया, जब मुगल शासक औरंगजेब ने 1665 में मंदिर को पूरी तरह से वीरान कर दिया। कहते हैं, उस समय मंदिर के पत्थर भी टूट चुके थे और भक्त दूर-दूर तक बिखर गए।

लेकिन इतने बड़े हमलों के बावजूद सोमनाथ का नाम क्यों जिंदा रहा? क्या यह मंदिर सिर्फ एक स्थल था या इसमें कोई ऐसी शक्ति थी जो हर बार इसे पुनर्जीवित करती थी, इसे राख से फिर से खड़ा करती थी? यह दर्शाता है कि सोमनाथ सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की अदम्य भावना का प्रतीक है।

सौभाग्य से, सोमनाथ की कहानी सिर्फ विनाश की नहीं, बल्कि पुनर्जन्म की भी है। 12वीं सदी में (1143-1162 ईस्वी), चालुक्य राजा कुमारपाल ने एक मजबूत पत्थर का मंदिर बनवाया, जिसने सोमनाथ की रूह को फिर से जगाया और उसकी भव्यता को पुनर्जीवित किया। फिर 14वीं सदी में (1308-1371 ईस्वी), चूड़ासमा वंश के राजाओं महीपाल और ठेंगरा ने मंदिर के लिए अपना योगदान दिया। कहते हैं, उन्होंने मंदिर की सेवा की और भक्तों को फिर से एकत्रित किया, जिससे इस पवित्र स्थल की महिमा बनी रही।

लेकिन असली चमत्कार 18वीं शताब्दी में हुआ, जब 1883 ईस्वी में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने सोमनाथ के लिए एक नई रोशनी जलाई। उन्होंने मूल मंदिर से थोड़ी दूर पर एक छोटा लेकिन पवित्र मंदिर बनवाया, जो आज भी ओल्ड सोमनाथ या अहिल्याबाई मंदिर के नाम से जाना जाता है। अहिल्याबाई के इस काम ने सोमनाथ के स्वरूप को हमेशा के लिए जीवित रखा और उनकी दूरदर्शिता ने यह सुनिश्चित किया कि शिव की ज्योति कभी बुझे नहीं।

और फिर आया वह पल जो सोमनाथ के इतिहास का सबसे शानदार दौर था: 1950 के दशक में, भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में सोमनाथ मंदिर को एक नए, भव्य रूप में बनाया गया। यह एक राष्ट्रीय संकल्प था, भारत की खोई हुई गरिमा को पुनः स्थापित करने का प्रयास। 11 मई 1951 को जब यह मंदिर दोबारा खुला, तो लाखों लोगों ने “हर हर महादेव” के नारों से आसमान गुंजा दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, यह नई इमारत चालुक्य शैली की वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है, जिसका 150 फुट का शिखर आज भी सबको मोहित करता है और दूर से ही अपनी भव्यता का परिचय देता है। तो दोस्तों, यह था सोमनाथ का इतिहास—विध्वंस और पुनर्जन्म का एक अद्भुत सफर, जो हमें बताता है कि आस्था की शक्ति किसी भी विनाश से बड़ी होती है।

रहस्यों का खजाना: क्या छिपा है सोमनाथ की गहराइयों में?

सोमनाथ मंदिर सिर्फ आस्था और इतिहास का गवाह ही नहीं, बल्कि रहस्यों का एक ऐसा खजाना है जो दिल और दिमाग दोनों को हैरान करता है। स्कंदपुराण के एक श्लोक में कहा गया है:

सोमनाथं ज्योतिर्लिंगं सर्वपापपापविनाशनम्।

यानी, सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग हर पाप को नष्ट कर देता है। लेकिन इस मंदिर के गर्भगृह में ऐसे राज छिपे हैं जो हजारों सालों से उलझे हुए हैं। क्या यह मंदिर सिर्फ पत्थर का ढांचा है या इसमें कोई ऐसी शक्ति छिपी है जो विज्ञान भी समझ नहीं पाया?

1. हवा में तैरता शिवलिंग: इंजीनियरिंग का कमाल या दिव्य शक्ति?

सोमनाथ का सबसे पहला और विस्मयकारी रहस्य वह शिवलिंग है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह कभी हवा में तैरता था। स्कंद पुराण और लोककथाओं के मुताबिक यह शिवलिंग इतना पवित्र और ऊर्जावान था कि यह जमीन को छुए बिना मंदिर के गर्भगृह में तैरता रहता था, मानो गुरुत्वाकर्षण का इस पर कोई प्रभाव ही न हो। 1017 ईस्वी में, जब अफगान विद्वान अलबरूनी सोमनाथ आया, तो उसने अपनी किताब “द तारीख-ए-हिंद” में लिखा कि यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि चुंबकीय पत्थरों का कमाल था। कहते हैं, मंदिर के नीचे और ऊपर ऐसे शक्तिशाली पत्थर रखे गए थे जो शिवलिंग को हवा में स्थिर रखते थे, जो प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग की पराकाष्ठा थी। लेकिन सवाल यह है: क्या यह सच में पुराने भारत की इंजीनियरिंग का चमत्कार था या कोई ऐसी दिव्य शक्ति का राज जो आज भी हमें अचंभित करती है? और अगर ये चुंबकीय पत्थर थे, तो वे आज कहाँ गए? क्या 1025 में महमूद गजनवी के हमले के दौरान वो पत्थर भी लूट लिए गए, जिससे शिवलिंग का यह अद्भुत गुण समाप्त हो गया, या वे आज भी मंदिर के नीचे कहीं छिपे हुए हैं, जो किसी दिन फिर से प्रकट हो सकते हैं?

2. स्यमंतक मणि: भगवान कृष्ण का रहस्यमयी रत्न और उसका खोया हुआ ठिकाना

महाभारत के अनुसार, स्यमंतक मणि एक ऐसी दिव्य मणि थी जो भगवान कृष्ण से जुड़ी थी। कहते हैं, यह मणि इतनी शक्तिशाली थी कि वह अपने आस-पास धन-दौलत और ऊर्जा फैलाती थी, और इसे स्पर्श करने मात्र से किसी भी गरीबी का नाश हो सकता था। पुराणों में कहा गया है कि स्यमंतक मणि को सोमनाथ के शिवलिंग के अंदर या पास ही कहीं छुपाया गया था ताकि कोई इसे चुरा न सके और इसकी शक्ति का दुरुपयोग न कर सके। लेकिन जब 1025 में गजनवी ने मंदिर पर हमला किया, तो क्या वो इस मणि के पीछे था? कहते हैं, उसने मंदिर का खजाना तो लूटा, लेकिन स्यमंतक मणि का कोई पता नहीं चला। क्या यह मणि आज भी मंदिर के गर्भगृह में कहीं छिपी है, जो किसी दिन प्रकट हो सकती है, या क्या यह एक ऐसी कथा है जो सिर्फ भक्तों के दिल में जिंदा है, उन्हें विश्वास और आशा देती है? और अगर यह मणि सच में यहाँ है, तो क्या इसकी शक्ति आज भी मंदिर के आसपास महसूस होती है, जो इसे और भी पवित्र बनाती है?

3. बाण स्तंभ: प्राचीन ज्ञान का अचंभित करने वाला प्रमाण

फिर आता है सोमनाथ का वह रहस्य जो दुनिया भर के वैज्ञानिकों को हैरान करता है: बाण स्तंभ। मंदिर के पास एक छोटा सा स्तंभ है जिसमें छठी शताब्दी का एक शिलालेख लिखा है। इसमें कहा गया है कि “आसमुद्रान्त दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधित ज्योतिर्मार्ग” यानी यहाँ से समुद्र के रास्ते अंटार्कटिका तक कोई भी जमीन नहीं आती। यह बात आज मॉडर्न साइंस भी मानती है कि सोमनाथ से साउथ पोल तक एक सीधी लाइन में कोई भी भू-भाग नहीं है। लेकिन यह सवाल दिल को छू जाता है: जब छठी सदी में न सैटेलाइट थे, न गूगल मैप्स, और न ही आधुनिक भूगोल का ज्ञान, तो प्राचीन भारत के लोगों को यह ज्ञान कैसे मिला? क्या यह सिर्फ एक अद्भुत संयोग था, या कोई प्राचीन विद्या का राज जो हमें आज भी पूरी तरह समझ नहीं आया? और क्या ये शिलालेख कोई बड़ा संदेश छुपाए हुए है, जो हमें भविष्य के लिए कोई मार्गदर्शन दे सकता है?

4. गोमती नदी का रहस्य: शिव की माया या वैज्ञानिक पहेली?

अब चलिए मंदिर के पास बहती गोमती नदी के एक अजीब रहस्य की बात करते हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि गोमती का पानी हर रोज सुबह बढ़ता है और शाम को घट जाता है। यह ऐसा चमत्कार है जो वैज्ञानिक भी पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। कहते हैं, यह शिव की माया है जो नदी के पानी को हर दिन एक नए रूप में लाती है, जैसे भगवान स्वयं जलक्रीड़ा कर रहे हों। लेकिन क्या यह सिर्फ एक प्राकृतिक घटना है, या इसके पीछे कोई बड़ा रहस्य छिपा है? ASI की कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक सोमनाथ के आसपास का भूगर्भीय स्ट्रक्चर इतना अनोखा है कि यह पानी के फ्लो को प्रभावित करता है, लेकिन इसका सटीक कारण आज भी शोध का विषय है।

5. अरब सागर का संरक्षण: प्रकृति या शिव की दिव्य शक्ति?

और दोस्तों, अरब सागर का वो राज जो सबको हैरान करता है। हजारों साल से यह विशाल समुद्र सोमनाथ के पास बहता है, लेकिन कभी इसने मंदिर को नुकसान नहीं पहुँचाया। कई भयंकर तूफान आए, समुद्र के उफनते पानी ने दुनिया के कई हिस्सों को तबाह किया, लेकिन सोमनाथ अपनी जगह पर अडिग रहा, मानो उसे कोई अदृश्य शक्ति बचा रही हो। कहते हैं, यह शिव की रक्षा का चमत्कार है। स्थानीय लोग एक कथा सुनाते हैं कि जब भी कोई बड़ा तूफ़ान आता है, समुद्र का पानी मंदिर के पास आकर शांत हो जाता है, जैसे वह मंदिर को प्रणाम कर रहा हो। क्या यह सिर्फ संयोग है या प्रकृति खुद इस मंदिर की हिफाजत करती है? और अगर यह सच है, तो क्या मंदिर के नीचे कोई ऐसी शक्ति है जो समुद्र को भी रोक लेती है, उसे अपनी सीमाओं में रहने के लिए मजबूर करती है?

6. 2020 की खुदाई: तीन मंजिला इमारत का प्राचीन राज

अब एक और बड़ा राज जो 2020 की खुदाई से सामने आया, जिसे आईआईटी गांधीनगर के पुरातत्व विशेषज्ञों ने किया था। उन्होंने ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) का इस्तेमाल करके मंदिर के नीचे एक तीन मंजिला इमारत का पता लगाया। ASI की रिपोर्ट के मुताबिक, यह ढाँचा शायद हजारों साल पुराना है, लेकिन इसका असली समय या मकसद आज भी एक राज है। क्या यह वह प्राचीन मंदिर है जो सतयुग में चंद्रदेव ने बनवाया था, या क्या यह कोई गुप्त मंदिर का हिस्सा है जिसे आक्रमणकारियों से छिपाया गया था? और अगर यह इतना पुराना है, तो क्या इसमें स्यमंतक मणि या कोई और खजाना छिपा है? ये सवाल आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना हुआ है, जो भविष्य में और भी खोजों का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

और एक बात, स्कंद पुराण के मुताबिक सोमनाथ मंदिर का नाम हर युग में बदला। सतयुग में इसे सोमनाथ कहा गया, त्रेतायुग में प्राणनाथ, द्वापर युग में भैरवनाथ और कलयुग में फिर से सोमनाथ। लेकिन पुराण कहते हैं कि भविष्य में यह प्राणनाथ के नाम से जाना जाएगा। क्या यह नाम बदलने की कथा सिर्फ एक पौराणिक बात है या इसके पीछे कोई बड़ा संदेश छुपा है? और क्या यह मंदिर भविष्य के लिए कोई बड़ा राज रखता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए कोई महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है?

तो दोस्तो, यह थे सोमनाथ के वो रहस्य जो दिल और दिमाग दोनों को छू जाते हैं।

सोमनाथ: आस्था का जीवंत केंद्र और भारत की धड़कन

सोमनाथ मंदिर की कहानी पौराणिक कथाओं से शुरू हुई, इतिहास के तूफानों से गुजरी और रहस्यों के दरवाजे खोले। लेकिन आज यह मंदिर सिर्फ एक पुरानी कथा या राज नहीं, बल्कि भारत की आस्था और संस्कृति का एक जिंदा केंद्र है, एक ऐसी धड़कन जो सदियों से बज रही है। एक श्लोक कहता है:

सोमनाथ दर्शनं पुण्यं सर्वकामसिद्धिदम्।

यानी, सोमनाथ के दर्शन से हर मनोकामना पूरी होती है। आज हर साल लाखों भक्त यहाँ आते हैं, अपने दुख-दर्द छोड़कर शांति और शक्ति ले जाते हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है। मंदिर प्रशासन के मुताबिक हर साल 20 से 30 लाख भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। होली, शिवरात्रि और श्रावण महीने में यहाँ इतनी भीड़ होती है कि वेरावल का हर रास्ता “हर हर महादेव” के नारों से गूँज उठता है। ये भक्त सिर्फ भारत से नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अमेरिका जैसे विदेशों से भी आते हैं, जो इस मंदिर की वैश्विक पहचान को दर्शाता है। कहते हैं, यहाँ का शिवलिंग आज भी वही शक्ति रखता है जो चंद्रदेव के समय में था, एक ऐसी ऊर्जा जो हर भक्त को अपनी ओर खींचती है।

सोमनाथ की शानदार इमारत आज के जमाने में भी सबको मोहित करती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के रिकॉर्ड के मुताबिक यह मंदिर चालुक्य शैली की वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है, जो प्राचीन भारतीय शिल्प कौशल का गौरव है। इसकी 150 फुट ऊँची शिखर पर 10 टन का स्वर्ण कलश सूरज की रोशनी में चमकता है, जो दूर से ही इसकी भव्यता का परिचय देता है। और मंदिर के ऊपर 27 फुट लंबा एक ध्वज है जो हर छह महीने में एक बड़े समारोह के साथ बदला जाता है। यह शिखर और ध्वज न सिर्फ मंदिर की सुंदरता बढ़ाते हैं, बल्कि इसकी सनातन शक्ति को भी दिखाते हैं। कहते हैं इस शिखर के नीचे खड़े होने से एक अलग सी शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।

 अंत में यही निष्कर्ष निकलता है कि सोमनाथ मंदिर की कहानी सिर्फ हमलों और तूफानों की नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं और आधुनिक विज्ञान के बीच एक अद्भुत सेतु है। यह भारत के उस सनातन जीवन का प्रतीक है जो हर संकट के बाद फिर से उभरता है। यह वह स्थल है जहाँ हर प्रार्थना सुनी जाती है, और हर पाप धुल जाता है।

 आज यही अपनी बातों को विश्राम देते हैं । अगली शृंखला में एक और ज्योतिर्लिंग की मानसिक यात्रा करेंगे ।

हर हर महादेव 🔱

यात्रा जारी है … to be continued

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