शिवलिंग : आस्था, विज्ञान और दर्शन का संगम

इसके पहले हम जान चुके हैं कि सावन क्यों इतना पावन है । इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए आज  हम बात करेंगे कि आख़िर शिवलिंग का रहस्य क्या है ? । शिवलिंग की कहानी में आस्था, विज्ञान और दर्शन का अद्भुत संगम कैसे है ? (Part 2)

ॐ नमः शिवाय

ब्रह्मा मुरारी सुरार्चित लिंगं, निर्मल भासित शोभित लिंगम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम्॥


अर्थ:
मैं उस सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ,
जो ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं द्वारा पूजित है,
जो पवित्र और प्रकाशित होकर शोभित होता है,
और जो जन्म-मृत्यु के दुखों का नाश करने वाला है।

शिवलिंग को समझना, शिव को जानने की पहली सीढ़ी है।

शिवलिंग वो बिंदु है जहाँ सृष्टि का आदि और अनंत एक हो जाते हैं।”

‘लिंग’ का अर्थ क्या है?

संस्कृत में “लिंग” शब्द का अर्थ होता है –

सूचक, प्रतीक, या संकेत।

शिवलिंग का तात्पर्य है —

शिव का निराकार, अनंत, अखंड और ब्रह्मस्वरूप रूप,

जो किसी रूप या आकार में सीमित नहीं किया जा सकता। शिवलिंग न तो कोई मूर्ति है, न ही कोई साधारण पत्थर। वह उस परम तत्त्व का प्रतीक है ।

शिवलिंग, शिव के निराकार ब्रह्मस्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है।

वे किसी आकार, रंग, जाति, काल या तत्व से परे हैं।

जहाँ शक्ति और शिव, सृष्टि और शून्यता एक हो जाते हैं।

🔱 शिवलिंग का रहस्य, महात्म्य और गूढ़ अर्थ

(शिवलिंग केवल एक प्रतीक नहीं — वह ब्रह्मांड का बीज है

शिवलिंग के भागों का गूढ़ अर्थ

भागप्रतीक
ऊर्ध्व स्तंभ (लिंग)ब्रह्म, शिव, पुरुष तत्व (चेतना)
आधार पीठिका (योनि)शक्ति, प्रकृति, स्त्री तत्व (ऊर्जा)
दोनों का एक साथ होनासृष्टि की रचना, संतुलन और ब्रह्मांड का रहस्य
  

शिवलिंग: योग और ध्यान का प्रतीक

शिवलिंग आकार में ऊर्ध्वमुखी होता है — यह ऊर्जा के जागरण (कुंडलिनी) का प्रतीक है।

  • ध्यान में बैठा साधक शिवलिंग जैसा ही होता है —

मौन, स्थिर, और भीतर की ओर झुका हुआ।

शिवलिंग के पास बैठकर ध्यान करने से

चित्त स्थिर होता है और आत्मा परम से जुड़ने लगती है।

शिवलिंग- विज्ञान, दर्शन और भक्ति का मेल

वैज्ञानिक रूप से:

शिवलिंग के आकार में ऊर्जा संकेन्द्रण होता है।

जल या दूध का अभिषेक करने पर, ध्वनि कंपन उत्पन्न होते हैं —

जो मानसिक तनाव को कम करते हैं।

आध्यात्मिक रूप से:

शिवलिंग शिव की अनंत उपस्थिति का संकेत है —

जो रूप में नहीं, अनुभव में उपलब्ध होते हैं।

प्राकृतिक दृष्टिकोण से:

बेलपत्र, गंगाजल, और धतूरा —

ये सभी वातावरण को शुद्ध करते हैं और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

शिवलिंग के प्रकार:

प्रकारविशेषता
ज्योतिर्लिंगप्रकाश के रूप में प्रकट – भारत के 12 पवित्र शिव स्थल
स्वयंभू लिंगजो स्वयं प्रकट हुए (जैसे: केदारनाथ)
नर्मदेश्वर लिंगनर्मदा नदी से प्राप्त, पूज्य और ऊर्जायुक्त
पारद शिवलिंगपारे से निर्मित, रोग निवारक और तांत्रिक दृष्टि से शक्तिशाली

भक्ति भाव से शिवलिंग का महत्व:

  • जब आप शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं —

आप अपने अहंकार, विकार, मोह और क्रोध को धोते हैं।

  • जब आप बेलपत्र अर्पित करते हैं —

आप अपने हृदय की शुद्धता और समर्पण व्यक्त करते हैं।

  • जब आप “ॐ नमः शिवाय” जपते हैं —

आप अपने भीतर के शिव से जुड़ते हैं।

“शिवलिंग केवल बाहर नहीं है,

वह तुम्हारे भीतर की चैतन्य ज्योति भी है।”

अभी तक हम लोग बस ये जाने कि आखिर शिवलिंग क्या है और इसका महत्व क्या है । लेकिन ये बात यही खत्म नहीं होती। सबसे आश्चर्य तो शिव लिंग की उत्पत्ति की कहानी में है । जिसको जानने के बाद जो नास्तिक लोग हज़ार तरह की अनर्गल बातें करते हैं । शायद उनके समझ में कुछ आ जाए । एक बात सच है कि आज भगवान को लेकर बहस होती है । इन मूर्खों को कौन समझाये कि आस्था तर्क का नहीं विश्वास का विषय है और विश्वास को माना जाता है सवाल नहीं  किया जाता ।

अभी हाल में ही हमारी एक सज्जन से बात हुई उनको शिवलिंग का मतलब तो समझ आया नहीं लेकिन शिवलिंग से अपने मतलब की बात निकाल अपनी एक अलग व्याख्या देने में व्यस्त हैं । ऐसे तथाकथित पढ़े लिखे नास्तिकों को समझाया नहीं जा सकता । उनके लिए बस एक पक्तियाँ- “कभी अपने वेदों पुराणों का गहन अध्ययन कर लो फिर करो तर्क ।

खैर इन बातो से परे हम अपने शिव कथा को आगे बढ़ाते हैं ।

हमारे मन में सबसे ज़्यादा जिज्ञासा इस बात की होती है कि क्यों शिव के लिए ये लिंगाकार चुना गया तो हमारे पुराणों में इसको लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है । चलिए समझते हैं शिवलिंग की उत्पत्ति-

ब्रह्मा, विष्णु और शिव: अनंत ज्योति का रहस्य

एक समय की बात है, जब सृष्टि के दो महान अधिपति, ब्रह्मा और विष्णु, अपने-अपने प्रभुत्व को लेकर विवाद में उलझे हुए थे। ब्रह्मा, जिन्होंने ब्रह्मांड की रचना की थी, आत्मविश्वास से भरे हुए दावा कर रहे थे, “मैंने इस संपूर्ण सृष्टि का निर्माण किया है, इसलिए देवों में सर्वोच्च स्थान मेरा है, भगवान का पद मेरा अधिकार है।”

किंतु विष्णु, जो सृष्टि के पालक थे, उनकी बात से असहमत थे। उन्होंने शांत स्वर में उत्तर दिया, “तुम इस पद का दावा कर रहे हो, यही इस बात का प्रमाण है कि तुम भगवान नहीं हो। सच्चा भगवान कभी अपनी महिमा का बखान नहीं करता।”

ब्रह्मा ने भौंहें चढ़ाईं और पूछा, “तो फिर भगवान कौन है?”

उनके इस गहन प्रश्न का उत्तर देने के लिए, अचानक ही एक अद्भुत घटना घटी। उनके बीचों-बीच एक प्रचंड अग्नि का खंभा प्रकट हुआ। यह स्तंभ इतना विशाल था कि उसकी लपटें आकाश के उच्चतम छोर को छू रही थीं और उसकी जड़ें पाताल की असीम गहराइयों में समाई हुई थीं। सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि यह अग्नि बिना किसी ईंधन के निरंतर प्रज्वलित हो रही थी, उसकी लौ अनंत ऊर्जा से धधक रही थी।

इस रहस्यमयी अग्नि को देखकर ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही विस्मय से भर गए। उन्होंने मिलकर यह निर्णय लिया कि इस अग्नि के छोरों का पता लगाया जाए।

ब्रह्मा ने तत्काल एक विशाल हंस का रूप धारण किया, जिसके पंखों में ब्रह्मांड की गति समाई हुई थी, और वे ऊर्ध्व दिशा में उड़ान भरने लगे। उनका लक्ष्य था अग्नि के शीर्ष तक पहुंचना। दूसरी ओर, विष्णु ने एक शक्तिशाली वराह का विकराल रूप धारण किया और पृथ्वी को चीरते हुए, अपनी सूंड से खुदाई करते हुए, पाताल की गहराइयों में उतरने लगे। उनका संकल्प था अग्नि के आधार तक पहुंचना।

ब्रह्मा रूपी हंस महीनों और वर्षों तक अनवरत आकाश में ऊंचे-ऊंचे उड़ते रहे। उन्होंने बादलों को पीछे छोड़ा, सितारों को पार किया और आकाशगंगाओं के रहस्यों को भेदते हुए अनंत शून्य में विचरते रहे, किंतु उस अग्नि का सिर उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया। अंततः, अपनी सारी शक्ति क्षीण कर, वे थककर लौट आए, उनके पंख बोझिल हो चुके थे और उनके हृदय में निराशा घर कर गई थी।

ठीक इसी प्रकार, विष्णु-वराह रूप में नीचे धरती की असीम गहराइयों में खुदाई करते रहे। उन्होंने भूगर्भ की परतों को भेद दिया, रसातल के अंधकार में प्रवेश किया, किंतु उस अग्नि का निचला छोर भी उन्हें कहीं नहीं मिला। वे भी थक-हारकर, निराश मन से, वापस लौटे।

दोनों महान देव एक-दूसरे के सामने आए। विष्णु ने अपनी विनम्रता का परिचय देते हुए स्वीकार किया, “इस अग्नि का कोई ओर-छोर नहीं है। यह अनंत और असीम है। इसकी सीमाओं को जानना असंभव है।”

किंतु ब्रह्मा के मन में अहंकार अब भी शेष था। उन्होंने एक सफेद झूठ बोला, “मुझे उसका सिर मिल गया! मैंने वहाँ केतकी के सुगंधित फूल भी देखे।” यह कहते हुए, उन्होंने केतकी के कुछ फूल दिखाए, जैसे कि वे वहीं से लाए हों। उन्होंने गर्व से कहा, “जो तुम नहीं कर सके, वह मैंने कर दिखाया। इसलिए, भगवान मैं ही हूँ!”

अभी ब्रह्मा अपने मिथ्या विजय का दावा कर ही रहे थे कि तभी उस अग्नि के खंभे में एक अद्भुत परिवर्तन आया। वह प्रचंड अग्नि स्तंभ फट पड़ा और उसमें से एक तेजस्वी आकृति प्रकट हुई। वे एक योगी की भांति साधु के वस्त्रों में थे, जिनका शरीर पवित्र राख से लिपटा हुआ था। उनकी आँखें गहन ज्ञान और असीम शांति से चमक रही थीं।

उन्होंने ब्रह्मा की ओर देखा और ज़ोर से हँसे, उनकी हँसी में गहन अर्थ छिपा था। फिर उन्होंने ब्रह्मा से कहा, “तुम इसलिए झूठ बोल रहे हो ताकि तुम स्वयं को देवों में सबसे शक्तिशाली सिद्ध कर सको। परंतु जो स्वयं को सर्वोच्च सिद्ध करने के लिए असत्य का सहारा लेता है, वह भगवान नहीं हो सकता।”

इसके बाद, वे विष्णु की ओर मुस्कराए, एक ऐसी मुस्कान जिसमें स्नेह और समझ थी। विष्णु ने आदरपूर्वक अपना सिर झुकाया। तब उस तेजस्वी सत्ता ने विष्णु से कहा:

तुम विनम्र हो और अपनी सीमाओं को स्वीकार करने के लिए तैयार हो। तुम वह जानने की जिज्ञासा रखते हो कि इस विनाश के परे क्या है, यह रहस्य तुम्हें भयभीत नहीं करता। तुम अज्ञेयता से भयभीत नहीं होते और अपने अज्ञान को स्वीकार करने का साहस रखते हो। तुम भगवान बनने की दिशा में सच्चे अर्थों में आगे बढ़ रहे हो।”

ब्रह्मा इस आत्मविश्वासी और तेजस्वी देव के सामने कांपने लगे, उनका अहंकार पल भर में चूर-चूर हो गया। विष्णु भी चकित भाव से उन्हें देखते रहे, उनके मन में श्रद्धा उमड़ रही थी।

तब उस तेजस्वी व्यक्ति ने अपना परिचय दिया:

यदि इस निराकार स्वरूप को कोई आकार दिया जा सकता है, तो वह मैं हूँ। मैं ही वह अनादि, अनंत सत्ता हूँ। मैं भगवान हूँ, मैं शिव हूँ।”

उस दिन से, पत्थर के लिंग की भगवान शिव के रूप में पूजा की जाती है। यह पत्थर का लिंग उस अनंत अग्नि स्तंभ का प्रतीक है जो ब्रह्मा और विष्णु के बीच प्रकट हुआ था – वह अग्नि जिसकी कोई आदि या अंत नहीं है। जो इस पवित्र पत्थर को केवल एक पत्थर मानकर पूजते हैं, वे ब्रह्मा की तरह ही अज्ञानी हैं, जिनमें कल्पना की कमी है और जो ब्रह्मांड के गहनतम ज्ञान को नहीं जानते। शिवलिंग हमें याद दिलाता है कि ईश्वर की महिमा हमारी सीमित इंद्रियों से परे है, वह अनंत और निराकार है, और उसे जानने के लिए अहंकार का त्याग और विनम्रता की आवश्यकता है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची दिव्यता शक्ति के प्रदर्शन में नहीं, बल्कि स्वयं की सीमाओं को स्वीकार करने और अज्ञात के प्रति जिज्ञासा रखने में है।

शिव: त्रिदेवों में संतुलन की शक्ति

  • ब्रह्मा रचना करते हैं
  • विष्णु पालन करते हैं
  • परंतु जब सृष्टि असंतुलित हो जाती है, तो शिव उसका संतुलन करते हैं — कभी ध्यान से, कभी तांडव से।

इस कथा के माध्यम से यह आसानी से समझ में आ गया होगा ।

इस प्रकार शिव ने त्रिदेवों में संतुलन स्थापित किया । इस कथा से जब ब्रह्मा जी ने अहंकार में झूठ बोला  और शिव जी के बार बार समझाने पर ब्रह्मा जी नहीं मान रहे थे तब शिव ने भैरव रूप में प्रकट होकर उन्हें संयम का पाठ सिखाया।

 शिव की महिमा अनंत है। उसको कुछ पन्नो में नहीं समेटा जा सकता। हम मनुष्य है हमारी बहुत कुछ सीमाएं है ।फिर भी हमारा प्रयास यहीं रहेगा कि आप सभी के “महादेव” को लेकर जो कौतूहल है उसको कुछ कम कर सके ।

कहानी जारी है मेरे दोस्त … to be continued …

हर हर महादेव!

ॐ नमः शिवाय 🔱

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