रथ यात्रा से ब्रह्म पदार्थ तक!

प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा, समानता और प्रेम का प्रतीक है, जहाँ हर कोई एक साथ जुड़ता है। (Part 3)

 इससे पूर्व हमने रथयात्रा के दौरान सालबेग की कथा को जाना था । जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ सालबेग की कथा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बहुआयामी और गहन आध्यात्मिक अनुभव है. इसकी हर परत में भगवान जगन्नाथ की लीलाएं, भक्तों के प्रति उनका प्रेम और ब्रह्मांड के गहरे रहस्य छिपे हैं. हमने पहले इसकी झलक देखी थी, आइए अब इसका और विस्तार से अनुभव करें.रथ यात्रा:

मौसी के घर की दिव्य यात्रा –

मानवीय रूप में परमपिताजगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा केवल एक वार्षिक उत्सव नहीं, बल्कि स्वयं परमपिता परमेश्वर का अपने भक्तों से मिलने का एक दिव्य और अंतरंग अनुष्ठान है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को शुरू होकर, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को समाप्त होने वाली यह यात्रा, सचमुच एक चलती-फिरती आध्यात्मिक नगरी का स्वरूप ले लेती है.यह यात्रा क्यों निकलती है, इसका सबसे सुंदर उत्तर है पारिवारिक प्रेम. कल्पना कीजिए, जगत के स्वामी, अपने बड़े भाई बलभद्र और लाड़ली बहन सुभद्रा के साथ, अपने भव्य मंदिर के सिंहासन को छोड़कर, अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाने के लिए निकलते हैं. यह दिखाता है कि भगवान भी मानवीय रिश्तों को कितना महत्व देते हैं. कथा कहती है कि एक बार बहन सुभद्रा ने पुरी नगर घूमने की इच्छा व्यक्त की थी. उनकी इच्छा पूरी करने के लिए, भगवान जगन्नाथ और बलभद्र जी उन्हें रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकले, और इस दौरान वे अपनी मौसी के घर, गुंडिचा मंदिर (जिसे मौसी माँ का मंदिर भी कहते हैं), में सात दिनों तक रुके. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.यह यात्रा हमें सिखाती है कि भगवान केवल मंदिरों की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं; वे हर हृदय में बसते हैं और अपने भक्तों से मिलने के लिए किसी भी सीमा को लांघ सकते हैं. लाखों भक्तों के लिए यह रथ यात्रा सीधे मोक्ष का मार्ग है, एक ऐसा दुर्लभ अवसर जब वे अपने आराध्य को अपने बीच पाकर धन्य महसूस करते हैं, उन्हें स्पर्श कर पाते हैं और उनके साथ इस विराट उत्सव का हिस्सा बन पाते हैं.रथों का दिव्य स्वरूप: स्वयं भगवान के गतिशील निवासरथ यात्रा के तीन मुख्य स्तंभ हैं – भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए बने विशालकाय रथ. ये केवल लकड़ी के ढांचे नहीं, बल्कि स्वयं देवताओं के गतिशील निवास हैं, जिनमें एक अद्भुत प्राण शक्ति होती है:

 * भगवान जगन्नाथ का रथ (नंदिघोष):

यह रथ लाल और पीले रंग का होता है, जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है. यह सबसे बड़ा रथ है, जिसमें 16 पहिए होते हैं, जो भगवान जगन्नाथ के विराट स्वरूप और उनके ब्रह्मांडीय चक्रों को दर्शाते हैं.

 * बलभद्र का रथ (तालध्वज):

हरा और लाल रंग का यह रथ, 14 पहियों वाला होता है. हरा रंग प्रकृति और विकास का, जबकि लाल रंग बल और शक्ति का प्रतीक है, जो बलभद्र जी की शक्ति और संरक्षण को दर्शाता है.

 * सुभद्रा का रथ (देवदलन):

काला और लाल रंग का यह रथ, 12 पहियों वाला होता है. काला रंग देवी की शक्ति और रहस्यों का, जबकि लाल रंग उनकी करुणा का प्रतीक है, जो बहन सुभद्रा की कोमलता और दयालुता को दर्शाता है.हर साल, इन रथों का निर्माण नए सिरे से किया जाता है, वह भी विशेष रूप से चुनी गई लकड़ियों से, जिन्हें जंगलों से लाकर पुरी में ही काटा और तैयार किया जाता है. यह परंपरा जीवन के चक्र, नवीनीकरण और शाश्वतता का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि भले ही समय और भौतिक रूप बदलते रहें, पर भगवान और उनकी परंपराएं शाश्वत हैं, बस उनका स्वरूप हर साल नया हो जाता है, ताकि भक्त नए उत्साह से उनकी उपासना कर सकें.रथ यात्रा के दौरान के चमत्कारिक अनुभव: जहाँ श्रद्धा विज्ञान से मिलती हैरथ यात्रा के दौरान कई ऐसी अद्भुत और चमत्कारी घटनाएं घटित होती हैं जो भक्तों को विस्मय में डाल देती हैं, और विज्ञान के लिए भी ये अबूझ पहेलियाँ बनी हुई हैं: 

* रथ खींचने का महत्व और अदृश्य शक्ति:

रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने का विशेष महत्व है. लाखों लोग रथ की रस्सियों को खींचने के लिए उमड़ पड़ते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इस रथ को खींचता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है. यह सिर्फ शारीरिक बल का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि श्रद्धा, समर्पण और सामूहिक भक्ति का चरम बिंदु है. सबसे हैरतअंगेज बात यह है कि रथ खींचने के दौरान लोगों को एक अदृश्य शक्ति का अनुभव होता है जो रथ को गति देती है. कई बार ऐसा देखा गया है कि जब रथ को खींचने वाले भक्तों की संख्या कम होती है, तब भी रथ स्वयं ही चलने लगता है, जो भगवान की दिव्य उपस्थिति और उनकी सर्वशक्तिमानता का साक्षात प्रमाण माना जाता है. मानो भगवान स्वयं भक्तों के बीच आकर उनके प्रयास में सहायक हो रहे हों.

 * रथयात्रा के दिन बारिश:

यह एक ऐसा अनुभव है जो हर साल रथ यात्रा के दौरान देखा जाता है. चाहे पहले मौसम कितना भी साफ क्यों न रहा हो, रथ यात्रा के दिन अकसर बूंदें बरसना शुरू हो जाती हैं, मानो आसमान भी इस दिव्य उत्सव में शामिल हो रहा हो.स्थानीय लोग इसे भगवान जगन्नाथ की विशेष कृपा मानते हैं, एक संकेत कि भगवान स्वयं इस उत्सव का हिस्सा बन रहे हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं. यह बारिश केवल जल नहीं, बल्कि समृद्धि, अच्छी फसल और दिव्य शीतलता का संदेश लेकर आती है, जो भक्तों के कष्टों को हर लेती है और उन्हें नवजीवन प्रदान करती है.

भगवान का बीमार पड़ना:

‘अनासर’ – भक्त के कष्ट का प्रतिबिंब और प्रभु का त्यागयह सुनकर आश्चर्य होता है, पर यह सच है! भारत में केवल जगन्नाथ मंदिर ही ऐसा है, जहाँ भगवान स्वयं बीमार पड़ते हैं! जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने से पहले, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के शीतल जल से स्नान कराया जाता है, जिसे सहस्त्रधारा स्नान कहते हैं. मान्यता है कि ठंडे पानी से इस विशाल स्नान के बाद, तीनों विग्रहों को बुखार आ जाता है और वे बीमार पड़ जाते हैं. इसके बाद इन्हें 15 दिनों के लिए एकांतवास (अनसर) में रखा जाता है. इस दौरान मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, और भगवान को आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयां और काढ़ा दिया जाता है. 15 दिन बाद जब भगवान ठीक हो जाते हैं, तब उनकी रथयात्रा निकाली जाती है. यह परंपरा हर साल निभाई जाती है.लेकिन

आखिर हर साल जगन्नाथजी को 15 दिनों के लिए बुखार क्यों आता है?

अगर इसे पौराणिक कथा से जोड़कर देखा जाए, तो यह भगवान जगन्नाथ के अपने परम भक्त माधवदास के प्रति असीम प्रेम और करुणा को दर्शाता है:ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के एक परम भक्त थे, जिनका नाम था माधवदास. वह प्रतिदिन जगन्नाथजी की अनन्य भक्तिभाव से आराधना करते थे. एक बार माधवदास को उल्टी दस्त का गंभीर रोग हो गया. वह इतने दुर्बल हो गए कि उनका चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया, लेकिन अपनी क्षमतानुसार वह अपना कार्य स्वयं करते रहे और किसी की सेवा नहीं ली.माधवदास का रोग जब और गंभीर होता गया, तब उनको उठने-बैठने में भी बहुत ज्यादा परेशानी होने लगी. तब जगन्नाथजी स्वयं एक सेवक बनकर उनके घर पहुँचे और माधवदास जी की सेवा करने लगे. जब माधवदास जी को होश आया, तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि “यह तो मेरे प्रभु ही हैं!” तब उन्होंने कहा, “प्रभु, आप तो तीनों लोकों के स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो! आप चाहते तो मेरा यह रोग भी तो दूर कर सकते थे! आप मेरा रोग दूर कर देते, तो आपको यह सब करना नहीं पड़ता.”तब भगवान जगन्नाथ जी ने अत्यंत प्रेम और गंभीरता से उत्तर दिया, “मुझसे अपने भक्त की पीड़ा नहीं देखी जाती, इसलिए मैं तुम्हारी सेवा कर रहा हूँ.” भगवान जगन्नाथ ने अपने परम भक्त को समझाते हुए कहा कि जो दुख हमारे भाग्य में लिखे हुए हैं, उन्हें हमें भुगतना ही पड़ता है. अगर इस जन्म में मैं तुम्हारा यह दुख दूर कर ही देता, तो तुम्हें इसे अगले जन्म में अवश्य भोगना पड़ता, लेकिन तुम्हारा जो 15 दिन का रोग और बचा है, इसे मैं स्वयं ले रहा हूँ.”यही कारण है कि भगवान जगन्नाथ हर साल 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं, और इस घटना को हर साल दोहराया जाता है. यह कथा हमें भगवान की अपने भक्तों के प्रति असीम करुणा, त्याग और प्रेम का भावुक संदेश देती है. यह दिखाता है कि वे अपने भक्तों के कष्टों को स्वयं पर लेकर उन्हें कर्मफल के बंधन से मुक्त कर देते हैं.

ब्रह्म पदार्थ का रहस्य:

शाश्वत चैतन्य और अनंत ऊर्जा का संचारभगवान जगन्नाथ की मूर्तियां भी इस मंदिर की सबसे रहस्यमयी चीज़ों में शामिल हैं. सबसे खास बात यह है कि इन मूर्तियों को लकड़ी से बनाया जाता है. एक विशेष अनुष्ठान के तहत इन मूर्तियों को एक निश्चित समय के बाद बदल दिया जाता है, जिसे नवकलेवर उत्सव कहते हैं. इस अनुष्ठान के दौरान पुरानी मूर्तियों को एक गुप्त स्थान पर दफन किया जाता है, और नई मूर्तियों का निर्माण किया जाता है. मूर्तियों में प्रयुक्त लकड़ी का चयन विशेष रूप से किया जाता है, और इस पूरी प्रक्रिया को अत्यधिक गोपनीयता के साथ पूरा किया जाता है. यह प्रक्रिया तब होती है जब एक अतिरिक्त ज्येष्ठ मास आता है, जो हर 8, 12 या 19 साल में होता है.यहाँ हर बार, इन वर्षों में, जगन्नाथ जी, बलदेव और देवी सुभद्रा तीनों की मूर्तियों को बदल दिया जाता है और फिर उनके स्थान पर नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. मूर्ति बदलने की इस प्रक्रिया से जुड़ा एक रोचक और रहस्यमयी किस्सा है:

 * अत्यधिक गोपनीयता और सुरक्षा:

इस अनुष्ठान के दौरान, मंदिर के आसपास पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है और शहर की बिजली भी काट दी जाती है. मंदिर के बाहर कड़ी सुरक्षा तैनात कर दी जाती है. सिर्फ मूर्ति बदलने वाले पुजारियों को ही मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है. उनके हाथों में दस्ताने पहनाए जाते हैं और उनकी आँखों पर पट्टी बंधी होती है. इसके बाद मूर्ति बदलने की प्रक्रिया शुरू होती है.यह गोपनीयता इसलिए है ताकि कोई भी इस दिव्य प्रक्रिया को सीधे न देख सके, क्योंकि माना जाता है कि इसे देखने वाला या छूने वाला भयंकर परिणाम भुगतेगा. 

* ब्रह्म पदार्थ का स्थानांतरण:

पुरानी मूर्तियों की जगह नई मूर्तियां लगा दी जाती हैं, लेकिन एक ऐसी चीज़ है जो कभी नहीं बदली जाती – वह है ब्रह्म पदार्थ. ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में लगा दिया जाता है. पुरानी मूर्ति से ब्रह्म पदार्थ निकल जाने से वह निर्जीव हो जाती है, इसलिए पुरानी मूर्तियों को बैकुंठ में (मंदिर परिसर में एक गुप्त स्थान पर) दफना दिया जाता है. इस प्रक्रिया को ‘देहांतर’ (शरीर का परिवर्तन) कहा जाता है. 

* वंशानुगत अधिकार:

यह ब्रह्म पदार्थ हस्तांतरित करने का अधिकार केवल ‘सबर’ कबीले के वंशजों को ही दिया जाता है, क्योंकि सबर कबीले के आदिवासी ही भगवान जगन्नाथ के सबसे पहले उपासक थे (नीलमाधव के रूप में). यह परंपरा आदिम ज्ञान और वफादारी को दिया गया सम्मान दर्शाता है. 

* ब्रह्म पदार्थ की प्रकृति:

मूर्ति बदलने वाले पुजारी को भी नहीं पता होता कि यह कैसा दिखाई देता है, क्योंकि इस ब्रह्म पदार्थ को आँखों पर पट्टी बांध कर ही हस्तांतरित किया जाता है. मान्यता है कि इस ब्रह्म पदार्थ को बदलने की विधि को अगर किसी ने भी देख लिया, तो उसकी मौत पक्की है. यह भी कहा जाता है कि अगर इस पदार्थ को किसी ने छू लिया, तो उसे कभी भी मनुष्य रूप नहीं मिलेगा. मूर्ति बदलने वाले कुछ पुजारियों ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया है कि जब ब्रह्म पदार्थ पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में डालते हैं, उस वक्त ऐसा लगता है कि हाथों में कुछ चल रहा हो, जैसे कोई खरगोश का बच्चा उनके हाथों में हो, या कोई ऐसी चीज़ है जिसमें जान है, क्योंकि हाथों में दस्ताने होते हैं, इसलिए इस पदार्थ के बारे में कुछ ज्यादा एहसास नहीं हो पाता है. यानी, ब्रह्म पदार्थ के किसी जीवित पदार्थ होने की कहानियाँ जरूर हैं, लेकिन इसकी हकीकत क्या है, यह कोई नहीं जानता है.

 * श्रीकृष्ण का हृदय?:

इस ब्रह्म पदार्थ को हमेशा श्रीकृष्ण से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि यह ब्रह्म पदार्थ और कुछ नहीं, श्रीकृष्ण का वही हृदय है जिसे सबर कबीले के लोग नीलमाधव के रूप में पूजा करते थे. जब श्रीकृष्ण ने देह त्यागी थी, तब उनका हृदय जल नहीं पाया था और उसे समुद्र में प्रवाहित कर दिया गया था, जो बाद में दारु ब्रह्म के रूप में प्रकट हुआ. यह पुरी मंदिर की मूर्तियों में हस्तांतरित होने वाला ब्रह्म पदार्थ आज भी एक रहस्य है, जो भगवान की अखंडनीय ऊर्जा और शाश्वत उपस्थिति का प्रतीक है.मंदिर संरचना का अद्भुत रहस्य: विज्ञान और आध्यात्म का संगमजगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला केवल भव्य नहीं, बल्कि रहस्यों और चमत्कारों से भरी है, जो प्राचीन भारतीय ज्ञान और इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण है: 

* अदृश्य छाया:

जगन्नाथ मंदिर करीब 4,00,000 वर्ग फुट एरिया में फैला है और इसकी ऊंचाई 214 फीट है. किसी भी वस्तु या इंसान या फिर पशु-पक्षियों की परछाई बनना तो विज्ञान का नियम है, लेकिन जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ के मंदिर का उपरी हिस्सा विज्ञान के इस नियम को चुनौती देता है. यहाँ मंदिर के शिखर की छाया हमेशा अदृश्य ही रहती है. इतना ही नहीं, अगर कोई व्यक्ति इस मंदिर पर जाकर खड़ा हो जाता है, तो उसकी परछाई भी नीचे नहीं दिखाई देती है, जो अपने आप में काफी अद्भुत है. यह दर्शाता है कि मंदिर का निर्माण किसी ऐसी तकनीक से किया गया है जो सूर्य की स्थिति के बावजूद छाया नहीं बनने देती, या यह स्वयं भगवान की एक लीला है. 

* चार रहस्यमय द्वार:

जगन्नाथ पुरी मंदिर में चार दरवाजे हैं, जो अन्य मंदिरों से इसे अलग बनाते हैं:  

* पहले द्वार का नाम सिंह द्वार (शेर का द्वार) है.  

* दूसरे द्वार का नाम व्याघ्र द्वार (बाघ का द्वार) है.  

* तीसरे द्वार का नाम हस्ति द्वार (हाथी का द्वार) है.  

* चौथे द्वार का नाम अश्व द्वार (घोड़े का द्वार) है.     मुख्य द्वार को सिंह द्वार कहा जाता है. ये द्वार न केवल दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं और देवताओं के गुणों को भी दर्शाते हैं. 

* समुद्र की लहरों की आवाज़ का गायब होना:

पुरी समुद्र तट पर स्थित होने के बावजूद, मंदिर के अंदर समुद्र की लहरों की आवाज़ सुनाई नहीं देती! जब तक आप मंदिर के बाहर रहते हैं, तब तक आपको समुद्र की लहरों की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है, लेकिन जैसे ही आप मंदिर के सिंहद्वार के अंदर प्रवेश करते हैं, लहरों की आवाज पूरी तरह से गायब हो जाती है. यह रहस्य आज भी अनसुलझा है और लोगों को सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर ऐसा कैसे संभव हो सकता है. यह दर्शाता है कि मंदिर परिसर एक विशेष ऊर्जा क्षेत्र है, जहाँ बाहरी संसार का शोरगुल थम जाता है और मन आंतरिक शांति की ओर उन्मुख होता है. 

* स्वर्गद्वार और चिताओं की गंध का अंत:

मंदिर के पास में ही स्वर्गद्वार भी है, जहाँ पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं. सिंहद्वार में कदम रखने से पहले आसपास जलाई जाने वाली चिताओं की गंध आती है, लेकिन जैसे ही कदम सिंह द्वार के अंदर जाता है, यह गंध खत्म हो जाती है. यह चमत्कार हनुमान जी की लीला से जुड़ा है, जहाँ उन्होंने वायु का ऐसा चक्र बनाया था कि कोई भी अशुद्धि मंदिर के भीतर प्रवेश न कर सके.मंदिर के ऊपर से नहीं गुजरता कोई विमान और ना ही उड़ते हैं पक्षी: एक दिव्य सुरक्षा कवचयह एक ऐसा रहस्य है जो आधुनिक विज्ञान को भी हैरान कर देता है: 

* पक्षियों का निषेध:

आम तौर पर ऐसा देखा गया है कि मंदिरों के ऊपर से पक्षी गुजरते ही हैं या कभी-कभी उसके शिखर पर भी बैठ जाते हैं, लेकिन जगन्नाथ मंदिर इस मामले में सबसे रहस्यमय है. क्योंकि इसके ऊपर से कोई भी पक्षी नहीं गुजरता और ना ही इस मंदिर की गुंबद के ऊपर बैठता है! यह एक अद्भुत और अनसुलझा रहस्य है, जो मंदिर की दिव्य आभा और पवित्रता को दर्शाता है. 

* विमानों का निषेध:

सिर्फ पक्षी ही नहीं, मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज भी नहीं उड़ते हैं! माना जाता है कि जगन्नाथ पुरी मंदिर की सुरक्षा गरुड़ पक्षी करता है, जिसे पक्षियों का राजा कहा जाता है, और यही कारण है कि अन्य पक्षी मंदिर के ऊपर से जाने से डरते हैं. दिलचस्प बात तो यह है कि जगन्नाथ मंदिर पुरी के ऊपर आठ धातुओं से निर्मित एक चक्र है, जिसे नीला चक्र या सुदर्शन चक्र के नाम से जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यह चक्र मंदिर के ऊपर से गुजरने वाले वायुयानों में कई तरह की रुकावटें पैदा कर सकता है, इसी वजह से कोई भी वायुयान इस मंदिर के ऊपर से नहीं गुजरता. आश्चर्यचकित कर देने वाली बात तो यह है कि इंसानों तक तो ठीक है, लेकिन पक्षियों को कैसे पता है कि इस मंदिर के ऊपर से नहीं गुजरना है और न ही इसके ऊपर बैठना है? यह रहस्य विज्ञान को भी चुनौती देता है, और भगवान की असीम शक्ति का प्रमाण है.

जगन्नाथ मंदिर के रत्नभंडार से जुड़ा रहस्य:

अनंत धन और दैवीय संरक्षणपुरी के जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार मंदिर के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है. इस रत्न भंडार में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पूजा में इस्तेमाल होने वाले बेशकीमती रत्न, आभूषण और अन्य कीमती धरोहर रखी गई हैं. ओडिशा के कई राजाओं और सम्राटों ने इस खजाने में अपार धन, सोना, चांदी और रत्न दान किए थे. 

* रहस्यमय चाबियाँ और आंतरिक कक्ष:

सन् 1978 में रत्न भंडार का एक बार सर्वेक्षण किया गया था, लेकिन केवल बाहरी कक्ष की ही जांच की गई, क्योंकि भीतरी कक्ष की चाबियां रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थीं. लेकिन 46 साल बाद, 2024 में पहली बार रत्न भंडार के आंतरिक कक्ष को खोला गया! सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि आंतरिक कक्ष को सुबह 9:53 पर ही खोला गया, यानी पूरे शुभ मुहूर्त का ध्यान रखते हुए ही जगन्नाथ मंदिर के आंतरिक कक्ष को खोला गया था. 

* दैवीय सुरक्षा की मान्यता:

मान्यताओं का मानना है कि खजाने की रक्षा भगवान जगन्नाथ स्वयं करते हैं, और जो कोई भी इसे अनाधिकृत रूप से छूने या चुराने का प्रयास करता है, उसे भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते हैं. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि बहुत बार डकैत लोगों ने मंदिर के खजाने को चुराने का प्रयास किया था, लेकिन वे लोग कहाँ गायब हो गए, इस बात का पता आज तक किसी को भी नहीं चल सका. जांच कमेटी ने लोगों का एक भ्रम अवश्य दूर कर दिया है, क्योंकि लोगों का मानना था कि जगन्नाथ मंदिर के आंतरिक कक्ष में मौजूद खजाने की रक्षा सांप कर रहे हैं. लेकिन जब कमेटी ने रत्न भंडार के आंतरिक कक्ष के द्वार खोले, तब उन्हें कोई भी सांप नहीं दिखाई दिया. यह दर्शाता है कि भगवान की सुरक्षा किसी भौतिक जीव पर निर्भर नहीं है, बल्कि उनकी अदृश्य शक्ति ही पर्याप्त है.

 * खजाने का विवरण:

आंतरिक कक्ष के अंदर कुल 12 बक्से मिले थे, जिनको स्ट्रांग रूम में शिफ्ट कर दिया गया था. जब इन बक्सों की जांच की गई, तो इस बात का पता लगा कि इसमें जो आभूषण हैं, वे 12वीं शताब्दी के हैं. इसमें 74 सोने के आभूषण हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन 116 ग्राम से अधिक है. सोने, हीरे, मूंगा और मोतियों से बनी प्लेटें भी मिलीं. इसके अलावा, 140 से अधिक चांदी के आभूषण भी रत्नभंडार में रखे हुए थे. यह खजाना न केवल आर्थिक मूल्य में अनमोल है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति का एक अनमोल धरोहर है.तीसरी सीढ़ी का रहस्य: बैकुंठ या यमलोक? कर्म और विनम्रता का पाठयदि आप जगन्नाथ पुरी जाने का अपने मन में विचार कर रहे हैं, तो इस बात को जानना आपके लिए बहुत ही जरूरी है कि जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ माना जाता है, जिसके दर्शन मात्र से ही इंसान हमेशा-हमेशा के लिए पाप मुक्त हो जाता है. 

* यमराज की चिंता और भगवान का समाधान:

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ के दर्शन करके सभी लोग पापमुक्त होने लगे थे. तभी यह देखकर यमराज चिंतित होने लगे और भगवान श्री जगन्नाथ के पास पहुंचे. उन्होंने भगवान से कहा, “आपके दर्शन करके तो सभी मनुष्य बैकुंठ धाम पहुँच रहे हैं. इस तरह तो यमलोक खाली हो जाएगा और सभी मनुष्य बैकुंठ धाम पहुँच जाएंगे!” तब भगवान जगन्नाथ ने तीसरी सीढ़ी यमराज को देते हुए कहा कि “जब भी कोई भक्त दर्शन से लौटते समय इस तीसरी सीढ़ी पर पैर रखेगा, तो उसके सभी पुण्य खत्म हो जाएंगे, उसे मेरे दर्शन का फल नहीं मिलेगा, और वह बैकुंठ की बजाय यमलोक जाएगा.” 

* यम शिला की पहचान और महत्व:

अगर आप जगन्नाथ पुरी दर्शन करने के लिए जा रहे हैं, तो मंदिर में कुल 22 सीढ़ियां हैं, जिसमें आपको दर्शन करने के बाद नीचे से शुरुआत की तीसरी सीढ़ी का विशेष ध्यान रखना है और उस पर आपको अपने पैरों को रखने से बचना है, वरना आपके दर्शन के सभी पुण्य शून्य हो जाएंगे. इस ‘यम शीला’ की एक और पहचान यह है कि यह एक काले रंग का चमकता हुआ पत्थर है जिसे आप आसानी से पहचान सकते हैं. यह हमें सिखाता है कि भक्ति में शुद्धता, निस्वार्थता और विनम्रता कितनी महत्वपूर्ण है. यह हमें याद दिलाता है कि केवल दर्शन ही पर्याप्त नहीं, बल्कि कर्मों का फल भुगतना पड़ता है और अहंकार से पुण्य भी नष्ट हो सकते हैं.ये सभी रहस्य और कथाएं मिलकर जगन्नाथ धाम को केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि एक जीवित आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं, जहाँ हर कदम पर भगवान की लीलाएं, उनकी करुणा और उनकी असीम शक्ति का अनुभव होता है. यह एक ऐसा स्थान है जहाँ विज्ञान और आध्यात्मिकता एक साथ मिलते हैं, और मानवीय समझ की सीमाएं टूट जाती हैं. 

कहानी अभी जारी है…to be continued…

2 thoughts on “रथ यात्रा से ब्रह्म पदार्थ तक!”

  1. Very informative post…Jagnnath Mandir will be added to my visit list

    Keep posting…hoping to see for next post

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  2. Wow …thats interesting and its beyond imagination ….Love to go this holy place …thank you for this post ….still ravelling of some questionis pending…eagerly waiting for next post ….😊😊😊😊

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